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Showing posts from February, 2020

कैसी मेरी बसन्त

*कैसी मेरी बसन्त प्रियतम* कैसी मेरी बसन्त प्रियतम इस पीत लौ के पीत प्रकाश में दृग बहाती मैं पीत भई कैसी मेरी बसन्त प्रियतम इस दग्ध हृदय के ताप को कैसे शीत करे पीत चन्दन कैसी मेरी बसन्त प्रियतम हृदय कुँज में कोई झंकार नहीं नहीं हुआ पीत श्रृंगार प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम तुम ही तुम पीत श्रृंगार मेरा  बस तुमको ढूँढ़ रही प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम हिय कुँज में तिमिर घना कबसे बन पीत प्रकाश बसो प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम

तू ही बता

*तू ही बता* न तेरा पता पाया न समझा कुछ इशारा आँखों से अब बहता है बस पानी खारा खारा तू ही बता दे किस तरह दिल को मैं सम्भालूँ नहीं मुझसे सम्भलता अब बेताब है दुबारा किसको बताएँ हाल ए दिल कौन जाने बात क्या बस दर्द वही जाने जिसे इश्क़ ने हो मारा मीठी है यह जलन भी भरे कई तूफान भीतर तेरा नाम लेकर रोये बिन होता नहीं गुज़ारा हाय बड़ा मीठा मीठा दर्द है करते रहो इज़ाफ़ा इसका नशा भी साहिब लगता है मुझको प्यारा तेरे इश्क़ ने उठाये हैं तूफ़ान दिल में भारी है उतनी ही लज़्ज़त इसमें जितना है दर्द करारा आज डूबा दो मुझको साहिब इस इश्क़ के समंदर में नहीं लौटना मुझको वापिस नहीं देखना किनारा

क्यों है

*क्यों है* तुमसे दूर रहकर जीने की चाहत क्यों है ? हमको सदा से बेवफ़ा होने की आदत क्यों है ? नहीं आता इश्क़ हमको यह सच है जानते हैं फिर भी तुमको मुझसे इश्क़ की चाहत क्यों है ? है वीरान दिल यह मेरा फैला दूर तक अंधेरा बस इक तेरे नाम से ही इस दिल को राहत क्यों है ? भीतर कुछ पिघलता है आँखों से जो बहता है इस मीठी सी जलन से इस दिल को राहत क्यों है ? सच हमसे इश्क़ करके कुछ न मिलेगा साहिब पर तेरा इश्क़ ही साहिब सच्ची इबादत क्यों है ? तुमको किया है रुसवा मुद्दत से हमने ऐसे नस नस में बेवफ़ाई मेरे हाय ऐसी फितरत क्यों है ? क्यों दिल यह जल रहा है तेरा नाम लेकर बेताब सी इन साँसों को चलने की आदत क्यों है ?

कीन्ही ठगोरी

हरिहौं कीन्हीं बड़ी ठगोरी नाम धन कछु संचय न कीन्हीं ढोंग बढ़ावत जोरी कान दिये न सन्तन की बातां बाँवरी जगति दोरी नाम भजन की रीति बिसारी भाव भजन सौं कोरी कबहुँ छुटे दम्भ हिय कौ पतित बाँवरी करै निहोरी हमरो कोऊ बल नाँहिं नाथा तुमहिं किये सब होरी

रे मन हिय धर

रे मन हिय धर श्रीयुगल चरणकमल क्षण क्षण सुमिरै क्षणहुँ न बिसरै यहि सम्पति विपुल सेवत सुख पावत निशिबासर यहि प्रेम कौ फल श्रीयुगल चरण हिय धरै बाँवरी होवत मन निर्मल सकल वासना हिय की छुटै मिलत नाम कौ बल यहि अरजा करै गुरु चरण कमल सौं नासै घन तिमिर सकल

हाल ए दिल

खँजर चला के पूछते हैं क्या है हाल ए दिल मेरा खुद ही गवाही देगा दिल क्या है हाल ए दिल मेरा आँखे ही बोली आँखों से लफ़्ज़ों के दायरे सिमटे फिर अश्क़ कहने दौड़ चले क्या है हाल ए दिल मेरा बस वही इक मुलाकात ही पकड़ रही पल पल हमें जाने यह कैसा दौर है क्या है हाल ए दिल मेरा उस एक पल को छूने को सब पल मेरे सिमट रहे वो तू या कोई और था क्या है हाल ए दिल मेरा खामोश था सब एक दम कोई लहर उठी न थी मैं खुद ही खुद से पूछती क्या है हाल ए दिल मेरा जाने यह क्या तूफ़ान है बस जा रही अब जान है पल पल है दिल पुकारता यही है हाल ए दिल मेरा आँखों मे है वही अदा वही शोखियाँ हैं खिल रहीं साँसे भी रुक रही हैं अब जाने क्यों तुझसे मिल रहीं वो पल ही था कुछ मय भरा जो होश सब उड़ा गया दिल ही गवाही देगा बस क्या है हाल ए दिल मेरा

जनमोत्सव बधाई

*श्रीस्वामिनी जन्मोत्सव बधाई* *********************** गौरवामांगिनी करुणामयी श्रीस्वामिनी  नबद्वीप विलासिनी श्रीविष्णुप्रिया नामिनी श्रीनबद्वीप नित्य केलि नित्य नव नव विलास श्रीगौर आंदिनी वाम अंगे करै निवास मृदुला सरोजिनी गौरांगी गौर प्रेम प्रदायिनी गौर प्रेम रसिकनी अति कोमल सुभायनी नित्य नव नव विलास श्रीयुगल नबद्वीप धाम प्रेम अवतार गौर प्रेम स्वरूपिणी विष्णुप्रिया भाम मङ्गल मङ्गल बधाई मङ्गल मङ्गल नृत्य गान नबद्वीप श्रीयुगल सब नागरी हृदय मान नव नव श्रृंगार झूम नव नव हिय उल्लास  नदिया युगल विलसत नित्य हिय कुँज करै रास वीणा अरु मृदङ्ग बाजै मधुर मधुर नाम गान बाँवरी यहि विनती करै राखो निज दासी जान  श्रीयुगल नाम जिव्हा रटै श्रीयुगल केलि नित बाँवरी दासी सेवा करै क्षणहुँ न बिसरै चित्त जय जय नबद्वीप धाम जय जय विष्णुप्रिया गौर दासी कबहुँ चरण राखो दुई करि जोरि करै निहोर

रे मन काहे न

रे मन काहे न भजिहै राम सकल वासना छांड जगति की जुगल चरण विश्राम बाँवरी रहै जन्मन सौं खोटी मुख सौंन निकसत नाम ऐसो कृपा करो मोरे नाथा मुख नाम रह्वै आठों याम जय निताई जय निताई जय निताई

विलास

*विलास*   विलास का अर्थ है खेल , क्रीड़ा या क्रिया। सर्वत्र ही उस परम तत्व का विलास है। इसको दो तरह समझा जा सकता है बाहरी विलास और भीतरी विलास। ज्ञानी के लिए सर्वत्र मैं ही हूँ तो मेरा ही विलास है। सब रूप में मेरा ही तत्व है। प्रेमी के लिए उसका होना ही पीड़ा है। मैं नहीं तुम ही तुम हो, सर्वत्र उस प्रियतम का ही विलास है। साधक की उस बाहरी विलास की विस्मृति करते हुए उस प्रेम तत्व के भीतरी विलास तक पहुंचने की यात्रा है।    बाहरी विलास में देखें तो सर्वत्र जड़ चेतन उस प्रभु का ही विलास है। वह ही अपने विभिन्न रूप बनाकर विलसित है अर्थात क्रीड़ायमान है। अपने से अपने मे ही खेल रहा है। वही पुरुष तत्व है जो अपनी ही लीला शक्ति प्रकृति से संलग्न होकर विभिन्न रूप में विलास कर रहा है।    भीतरी विलास अर्थात उसी परम् तत्व का खेल, यहाँ यह पुरुष प्रकृति न होकर श्रीयुगल विलास, श्रीहित विलास है। यहाँ यह प्रेम तत्व प्रिया प्रियतम उनकी सहचरियों तथा श्रीवृन्दावन का विलास है। यही प्रेम तत्व मूर्तिमान स्वरूप होकर स्वयम से स्वयम में खेल रहा है। सहचरियां उसी प्रेम तत्व को लाड लड़ाकर उनके मधुर व...

जयजय राधा वल्लभ लाल

*जयजय श्रीराधावल्लभ लाल* *ललित भरित झरित माधुरी* *श्रीराधावल्लभ लाल* *नित्य नव खेल नव चातुरी* *श्रीराधावल्लभ लाल* *केलि प्रवीण उन्मद रसोत्सव* *श्रीराधावल्लभ लाल* *माधुरी भरित प्रत्येक वेणु रव* *श्रीराधावल्लभ लाल* *युगल माधुरी युगल श्रृंगार* *श्रीराधावल्लभ लाल* *प्रेम मूर्ति प्रेम रस सार* *श्रीराधावल्लभ लाल* *तृषित नयन ललित अनुराग* *श्रीराधावल्लभ लाल* *नित्य झरित मधुर नव राग* *श्रीराधावल्लभ लाल* *शरद कुँज वासन्ती झूलन* *श्रीराधावल्लभ लाल* *ललित श्रृंगार प्रेम रस फूलन* *श्रीराधावल्लभ लाल* *प्रेम रसार्चना मधुर रसरीति* *श्रीराधावल्लभ लाल* *दासी दीजौ चरणन प्रीति* *श्रीराधावल्लभ लाल* *नयन निरखन मधुर रस श्रवण* *श्रीराधावल्लभ लाल* *बाँवरी कीजौ निज प्रीति झरण* *श्रीराधावल्लभ लाल*

ललित श्रृंगारिणी ललिते

🌹🌹 *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* 🌹🌹 *ललित प्रीति अनुरागिणी जय युगल रस भरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *नवल केलि विलासिनी परम् सखी वन्दिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *युगल चरण प्रीति प्रदायनी सकल ताप हरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *जयजय प्रीति श्रृंगारिणी मृदुल प्रेम सरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *श्रीयुगल सुख विस्तरिणी नव अनुराग झरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *जयजय ललित रसभरी सेवा प्रीति अन्नते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते*

यमुना महारानी

🌼 *जय जय जय यमुना महारानी* 🌼 *जय श्रीयमुनाजु भक्ति प्रदायनी* *जय जय जय त्रयताप नसायनी* *जय जय युगल प्रेम विहारिणी* *मङ्गल करणी प्रेम रस सारिणी* *जय जय युगल केलि विहारा* *जय रसरानी जय परम् उदारा* *जय श्रीयमुने प्रेमभूमि वासिनी* *जय आनन्दे सुमंगल रासिनी* *जयजय युगल श्रृंगार धारणी* *रस सरिते भव ताप हारिणी* *जयजय युगल प्रेमरस सुरभिते* *कोटिक देव मुनि जन वन्दिते* *दीजौ बाँवरी निज प्रेम कणिका* *जय युगल विहारिणी रस मणिका*

निताई गौर

*निताई गौर हित हरिदास* निताई गौर हित हरिदास नाम, सब युगल प्रेम की कूँजी। जपत जपत नित रटत रटत नित ,प्रगटै प्रेम कौ पूँजी।। नाम रूप लीला अभिन्न सब , एकौ सार होय प्रेम। युगल नाम कौ रटन बनै , क्षण क्षण कौ यह नेम।। बाँवरी कबहुँ हिय विकल होवै पाथर ,जिव्हा सौं करै गान। लोभ वासना मद मत्सर छूटै, कबहुँ तजै देह अभिमान।। सन्तन रसिकन कौ चरण धूरि, लै बाँवरी राखै नित्य ललाम। बाँवरी ठौर युगल चरणन माँहिं ,जिव्हा सौं उच्चरै नाम।।

भाव

अपनी प्राणा श्रीप्रियाजु के करों में टूटे हुए कँगन देख दासी अतिशय व्याकुल हो उठी, भीतर जाकर कँगन चूड़ियाँ लेकर श्रीप्रियाजु की कलाई में पहना दीं। अपने ही भाव मे मग्न श्रीप्रियाजु को जैसे कोई सुधि ही नहीं कि कब कँगन टूटा, तथा कब नई कँगन चूड़ियाँ उनकी कलाई में श्रृंगारित हो रही हैं। भाव गामिनी बाहर से उठ भीतर श्रीगौरसुन्दर के शयन कक्ष में चल देती हैं।     भीतर कक्ष में दासी का प्रवेश तो नहीं, पर आज वह अपनी स्वामिनी की सेवा में भाव रूप से उनके कँगन चूड़ी बन सेवा हो गई है, कक्ष के बाहर ही उसके प्राण इस श्रृंगार से तन्मय हो गए। भीतर श्रीप्रियाजु मलिन विरहणी वेश में नहीं , अपितु श्रृंगारित आसन पर श्रीनदिया युगल अपने सम्पूर्ण श्रृंगार विलास में सुशोभित हो रहे हैं। आह !! यह दासी अपनी स्वामिनी की सेवा में आज भीतर प्रवेश कर गई जैसे। क्या हृदय इस प्रेम आधिक्य को सहन कर पाएगा, यह रस मादकता जो श्री नदिया युगल की सुख सेवा हो झरण हो रही , इन चँचल कँगन चूड़ियों को क्या स्थिर रहने देगी। रस भार से उछलती यह कँगन चूड़ियाँ रसराज को पुनः पुनः रस विवश कर रही हों जैसे, जाने क्या रस पगी उछलन से रसराज गौरसु...

बरसाना

नमो नमो जय श्रीबरसाना होय कीर्ति कुँवरी कौ वास। प्रकट भयो किशोरी राधा कियो निज लीला विलास ।।1।। श्रीवृषभानु नन्दिनी राधा होय परम् प्रेम कौ सार। जाकी एक कृपा अवलोकन कर देय भव सिन्धु पार ।।2।। जन्म लियो महल बरसाना कियो अष्ट सखियन कौ सँग। श्रीकृष्ण प्रेम आह्लादिनी राधा लिए नव नव प्रेम उमंग।।3।। अष्ट सखी प्रकटी कुँवरी सँग, विलास बरसाना परिधि। सब कौ प्राण एक किशोरी होय सर्व निधि कौ निधि।।4।। कीर्ति मैया नित दुलरावै वृषभानु सदन कौ शोभा। लाड़ सौं विलास करै लाड़िली देय परम् प्रेम कौ लोभा।।5।। श्रीबरसाना नित्य धाम होय, नित्य आनन्द सुख की राशि। नाम लिए एक बार जिव्हा सौं कल्मष सकल विनाशी।।6।। बाँवरी रज नित्य शीश चढ़ावै देव दुर्लभ यह स्थान। वेद पुराण न बनत अगोचर, देय रसिक वाणी प्रमाण ।।7।।

नाम को स्वाद

हरिहौं रसना कबहुँ पावै नाम कौ स्वाद कबहुँ हरिनाम लगै अति नीको छांड सब भोग मवाद कबहुँ जग विषय लगै मोहे खारे साँची लागै हरिनाम कमाई जन्म जन्म सौं निर्धन बाँवरी अबहुँ नाम गुरु कृपा सौं पाई हरिहौं देयो बल हरिनाम भजन कौ बाँवरी कोऊ बल नाँहिं राखै पकरि पकरि हरिनाम जपावो तबहुँ कछु नाम रस एह चाखै

मुकुलित मुकुन्द

*मुकुलित मुकुन्द माधव सर्वेश्वरा* *कृष्णचन्द्र राधावल्लभ परमेश्वरा* *ललित त्रिभंग मुकुलित कमलनैन* *नवला रँग वल्लभित नव चाटु बैन* *राधा हियमणि नवल रस नव झंकार* *हरेकृष्ण नाम युगल प्रेम रस सार* *कृष्ण नाम गुण कृष्ण लीला चरित* *कृष्ण माधुरी नित नव नव ललित* *कृष्ण कृष्ण गाय मिले राधा प्रेम प्रसाद* *राधा राधा गाय होय कृष्ण भाव आस्वाद* *युगल नाम युगल मन्त्र युगल प्रेम सार* *प्रेम धन वितरण लियो गौर अवतार* *सहज धन दियो हरेकृष्ण मन्त्र एक* *जपो कृष्ण भजो कृष्ण सहित विवेक* *कलिताप हरण भव भञ्जन गौर अवतार* *हरे कृष्ण युगल नाम दियो प्रेम रस सार* *यहि भिक्षा दीजौ बाँवरी चाह्वै नाम धन* *युगल नाम युगल प्रेम हीना पतिता निर्धन*

भक्त अपराधी

हरिहौं बाँवरी भक्तन अपराधी माया भृमित पतित अति पामर कबहुँ चित्त न साधी नाम भजन की रीति बिसराई किये अपराधन कोटि स्वास अमोल बिरथा गए सगरै बाँवरी नीयत खोटी हा हा नाथ नाँहिं बल कोय आपहुँ करो सम्भारा अपनो बल राखी बाँवरी झूठा जनमन जन्म बिगारा

कबहुँ कृपा करें स्वामिनी

कबहुँ कृपा करिहौ स्वामिनी मोरी बाँवरी कोऊ बल न राखै किशोरी न राखै समर्था थोरी क्या कीजै हाय विकल हिय किशोरी तुम्हरौ चरणन धावै टेरत नाम दृगन बहै मोरे बाँवरी झूठी साँची बात बनावै हिय चटपटी दीजौ साँची किशोरी कबहुँ हिय फटै अकुलावै कबहुँ नाम राधा लगै मीठो बाँवरी सगरै काज भुलावै

वृन्दावन वास

कबहुँ मिलिहौं श्रीवृन्दावन वास रसिकन सँग मिले निशिबासर निरखत युगल विलास कबहुँ छटै तिमिर हिय कौ गाढ़ो होय ललित प्रकास कल्मष हिय कै कबहुँ धुलि जावैं कबहुँ गौरश्याम करैं वास सकल वासना जगति कौ छूटें कबहुँ प्रपन्च कौ नास बल न राखै कोऊ निर्बल बाँवरी बस कृपा कोर की आस

हमरी गति

हमरी गति तुम्हरि लौं प्यारी तुम्हरी चौखट परि स्वामिनी न दर दर के हौं भिखारी यहि चाह्वै बाँवरी दासी तुव नाम टेरत बीते उमरिया सारी एक नाम तिहारो स्वामिनी होय कोटि भव सिन्धु भारी बाँवरी निर्धन बिलपत रहै किशोरी आपहुँ लेयो उबारी कबहुँ स्वासा स्वास नाम लगै मीठा सेस सकल होय खारी

नीचन सौं नीच

हरिहौं होऊँ नीचन सौं नीच मलिन पतित हिय धसि धसि जावै बिरथा जगति कीच नाम कौ बीज सद्गुरु ने दीन्हा न होई प्रेम भक्ति सींच हरि गुरु चरण अनुराग न कीन्हा रहै भव बन्धन खींच जानै अपनी दुर्गति निश्चित फिरै पुनि पुनि आँखें मीच हा हा नाथ चरण रति दीजौ बाँवरी डोले भव सिन्धु बीच

बोझ अहम को भारी

हरिहौं बोझ अहम कौ भारी दिन दिन बाढ़त दून सवाया हिय सौं न जाय निकारी मद मत्सर विषय भोग वासना सब हिय आनि पसारी नाम भजन कौ रुचि न उपजै भजन लगै अति खारी बाँवरी फिरै जगति बौराई रही हिय मोह ममता डारी कोऊ भाँति हरि भजन बनै न ताड़न कौ अधिकारी

कृपा की कोर

कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली नहीं कोई भक्ति न शक्ति नहीं कोई योग नहीं तप बल तुम्हारा नाम भी भूली मलिन हृदय भरा बस छल यही हृदय करूँ अर्पण यही मेरी निधि खाली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली तेरा ही नाम धन पाऊँ तेरा हरदम रहे चिन्तन निर्धन हूँ लाडली कब से तेरी सेवा करूँ निशदिन  यही रहै कामना तेरी पूजा की होऊँ थाली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली कहाँ जाऊँ किसे टेरुं नहीं कोई ठौर अब पाऊँ हा राधे ही टेरत टेरत निशिबासर मैं अकुलाऊँ होऊँ तुम्हरौ ही जन प्यारी तुमहिं करो मेरी रखवाली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली कृपा की दृष्टि अब करदो स्वामिनी    तुम्हीं बस मेरी मेरी राधा मेरी प्यारी कहे बाँवरी दासी बस तेरी करूँ अर्पण मैं अश्रु बस यही निधि मेरी आली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली

जय गोविंदा जय मुरलीधर

*जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *श्रीप्रिया हियमणि नटवर नागर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *आनन्द घन नव नव रस सागर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *रसकेलि प्रवीण प्रेम रस चातर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *परम् कृपामयी रूप उजागर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *रसिक शिरोमणि श्रीश्रीराधावर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *श्यामल रूप ललित रत्नाकर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *रस लोभी प्रिया चरण सेवातुर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *बाँवरी दासी गाये कृपा कर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर*

ढोंग भक्ति को

हरिहौं ढोंग भक्तिन कौ भारी साँचो नाम न एकहुँ निकसै फिरै जगति भोग पसारी भोग पदार्थ मनहिं धसै गहरै जावत नाँहिं निकारी कौन भाँति चित्त भजन लगै बाँवरी नाम लगै सुखकारी जन्मन गमाई रही मूढ़ा बहुतेरे होवत जात ख़्वारी कौन भाँति नाम रस पीवै बाँवरी ताड़न कौ अधिकारी

वृन्दावन रस अनुराग

हरिहौं दीजौ वृन्दावन अनुराग नाम टेरत दृगन बहैं निशिबासर कबहुँ ऐसो होय भाग हा हा नाथ मोह मत्सर रहै घेरत हिय भजन न लाग कबहुँ नाम रस पिये हिय भीजै मेरो बुझत वासना आग कबहुँ हरि चरणन लगै प्यारे करै बाँवरी विषय त्याग भजन की बात न सुहावै कबहुँ ज्यों जल बहती झाग

रे मन

रे मन हिय धर श्रीयुगल चरणकमल क्षण क्षण सुमिरै क्षणहुँ न बिसरै यहि सम्पति विपुल सेवत सुख पावत निशिबासर यहि प्रेम कौ फल श्रीयुगल चरण हिय धरै बाँवरी होवत मन निर्मल सकल वासना हिय की छुटै मिलत नाम कौ बल यहि अरजा करै गुरु चरण कमल सौं नासै घन तिमिर सकल

कीन्ही बड़ी ठगोरी

हरिहौं कीन्हीं बड़ी ठगोरी नाम धन कछु संचय न कीन्हीं ढोंग बढ़ावत जोरी कान दिये न सन्तन की बातां बाँवरी जगति दोरी नाम भजन की रीति बिसारी भाव भजन सौं कोरी कबहुँ छुटे दम्भ हिय कौ पतित बाँवरी करै निहोरी हमरो कोऊ बल नाँहिं नाथा तुमहिं किये सब होरी