आसान नहीं नहीं आसान नहीं बिल्कुल भी यह सँग तुम्हारा नहीं तुम्हारे प्यारों का सँग हाँ सच उनकी सहजता उनकी कोमलता उनकी सुगन्ध उनकी मृदुलता क्षण भर को भी छू लेती है न तो ग्लानि ...
हरिहौं भोगन कौ ब्यौहार जन्म जन्म की बिगरी बाँवरी कछु न भ्यो सुधार हरिनाम भजन की रीति बिसराई नीको जगति सँसार दिन दिन जावै धँसी बाँवरी किस विध बनै निकार हरिनाम की न बनै उतराई ...
हा हा करत बाँवरी बौराई दीखे न चरण नवल श्यामा कौ ,निर्धन दासी अकुलाई धन तो चरण तिहारे स्वामिनी, काहे दासी राखी निर्धन कौन भाँति चरण रज पाऊँ तिहारी ,कंगाल बाँवरी कौ धन हा हा करत ...
सन्त हृदय होय अति उदारा पकरि पकरि अधम जन सारे भव सौं करते पारा कोमल हृदय परम उपकारी वाणी बहै रस धारा सुनि सुनि सकल भव ताप नासै कौन करै बिचारा सन्त समान न तरुवर कोय मीठे फल मीठ...
राधा प्यारी नवल सुकुमारी करत दृगन सौं बात मदन रस विवश भ्यै मोहन सहत न प्रेम की घात अधर सुरँग रँगे अनियारे झलमल करै नक बेसर कुंदन मणि अलंकृत टीको नवल श्रृंगार रही धर निलाम्ब...
हरिहौं जन्मन मैल भरी छांड भजन की बात बाँवरी जगति फिरै निकरी जन्म जन्म गमाई मूढ़े कबहुँ हरि सौं चित्त न लाई धिक धिक तेरो जीवन बाँवरी स्वासा स्वास गमाई हा हा नाथ पतित बाँवरी अ...
हरिहौं होऊँ अधम अति भारी गुरु कृपाल पतित अपनाए न बिगरी दशा बीचारी परम धन हरिनाम कौ पाया सन्त गुरु हितकारी जय गुरु जय गौरनिताई रहै बाँवरी चरण रज तिहारी हरिनाम की पूंजी बाढ़ै ...
हरिहौं भोगन कौ ब्यौहार जन्म जन्म की बिगरी बाँवरी कछु न भ्यो सुधार हरिनाम भजन की रीति बिसराई नीको जगति सँसार दिन दिन जावै धँसी बाँवरी किस विध बनै निकार हरिनाम की न बनै उतराई ...
कत्ल कर मेरा फिर हाल पूछते हैं जानते हैं जवाब फिर सवाल पूछते हैं हम तो मर चुके उनकी इसी अदा पर क्या है इस बारे वो ख्याल पूछते हैं बस इक नज़र निहार कर हमने क्या जी लिया जाम इश्क़ वा...
मेरे दिल मे रहकर मुझसे पर्दा मेरी सरकार करते हैं जाने क्यों ऐसा वो बार बार करते हैं। खामोशियों में आकर छेड़ जाते हैं बात इश्क़ की सम्भले से दिल को जाने क्यों बेकरार करते हैं म...
स्वामिनी कौन भाँति बिसराई जैसो कैसो तिहारी स्वामिनी काहे दीन्हीं भुलाई हौं अधम दीन अति पामर बाँवरी कछु बल न पाई हा हा करत लड़ैती मोरी चितवो नाँहिं अधमाई अपनो जन निहारो स्व...
हमको भी जलना है तेरे इश्क़ की आग में अपना वजूद जलाकर मुस्कुरायेंगे हम हमको मोहब्बत है इश्क़ के अश्कों से सुलगते से हुए चंद अश्क़ बहाएंगे हम हमको भी जलना है..... रह रह कर हूक सी उठती ...
श्यामसुन्दर अपनी प्राण प्रियतमा का नाम अपने अधरों पर विराजित वंशी में उतार रहे हैं। हृदय विरह वेदना से ऐसा छेदित सा हुआ है मानो हृदय का सम्पूर्ण आह्लाद ही वंशी में भर भर रव ...