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Showing posts from April, 2020

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प्रेम हिंडोरा 9*     आज मेरी स्वामिनी प्रसन्न भई,जेई कौ श्रृंगार धराती दासी अपनी प्राणा जु की बलिहारी लेय रही। स्वामिनी जु की भाव दशा आज विचित्र होय रही। कबहुँ तो ऐसो विरह जड़ता से जड़ होय की पुनः पुनः प्रियतम की रस केलि की स्मृति देय जेई दासी अपनी स्वामिनी कु श्रृंगार धरावै, परन्तु आज तो विचित्र स्थिति भई, मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई, मोरी लाडली प्रसन्न भई।   अपने हिय वासित प्रियतम कु हिय माँहिं निरख निरख मुस्काय रही। श्रृंगार अभी पूर्ण भी न भयौ , चँचला सहसा उठ खड़ी हुई, दौड़ पड़ी हिंडोरे की ओर, प्रेम हिंडोरे की स्मृति उन्मादित कर रही श्रीप्रिया जु को।बिना रुकै श्रृंगार कक्ष से उपवन में हिंडोरे की ओर दौड़ लगा रही है। दासी अपनी स्वामिनी के पीछे दौड़ रही है कहीं इस प्रेम दशा में यह बाँवरी सम्भल न सकै तो, दासी के प्राण तो अपनी स्वामिनी के पीछे ही निकल गए जैसे।हिंडोरे पर बैठ प्यारी जु , श्रृंगारित पुष्पों को अपनी कोमल करावली से स्पर्श कर रही है, जैसे नव नव सौरभता का दान दे रही हो, नव कोमलता दे रही हो, नव मधुरता दे रही हो।     दासी ने प्यारी जु को धीरे धीरे झुलाना आरम्भ ...

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प्रेम हिंडोरा 10*     मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई, उमगती हुई, लहराती हुई, नाचती हुई, हर्षिणी, मोरी किशोरी ,प्रसन्ना, उज्ज्वला , मोरी भोरी स्वामिनी दौड़ती हुई जा रही है। निकुञ्ज भवन के श्रृंगार कक्ष से उपवन की ओर, मदमाती सी हिरणी, चँचला, दामिनी सी कौंध रही है। श्रीप्रिया जु की ओढ़नी लहरा रही है ।ओढ़नी भी आज स्वामिनी जु की भांति नृत्य कर रही है।श्रृंगारित कर रही है अपनी कोमला को।    श्रीस्वामिनी नवयौवना रसीली प्रियाजु अपनी लहराती हुई ओढ़नी को पुनः पुनः समेटती है। ओढ़नी भी कहाँ यह तो प्रियतम श्यामसुन्दर ही अपनी प्रिया जु को आलिंगित, श्रृंगारित कर रहे हैं। श्रीप्रिया जु के वस्त्र आभूषणों में प्रियतम ही तो समाये हुए हैं। प्रिया जु हिंडोरे पर विराजित श्यामसुन्दर को देख मुस्कुरा रही हैं, कुछ लजा रही हैं, अपनी ओढ़नी का एक सिरा लेकर होंठो में दबा रही है। प्रियतम श्यामसुन्दर के पुकारने पर स्वामिनी उनके साथ हिंडोरे पर विराज जाती हैं।     परन्तु आज प्रिया जु चँचला हुई जा रही हैं।हिंडोरे से उठ पीछे की ओर चली जाती हैं और प्रियतम को झुलाने लगती हैं। अपने प्रियतम को क्षण क्षण प्रेम...

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 *प्रेम हिंडोरा 7*     आज प्रियतम श्यामसुंदर का जन्मोत्सव है। श्रीप्रिया जु अति प्रसन्न हैं। आज श्रीप्रिया जु ने पीला लहँगा धारण किया हुआ है जिसमे नीचे की और गुलाबी रँग की झालर है। सभी सखियन, अलियन ने भी आज पीत वस्त्र धारण किये हुए हैं। अपने प्राणधन श्रीयुगल को लाड करने को आज हिंडोरा भी पीले पुष्पों से सजाया हुआ है।    श्रीस्वामिनी जु हिंडोरे पर विराजमान हैं, परन्तु प्रियतम की प्रतीक्षा में हिंडोरा अभी झुलाया नहीं जा रहा। श्यामसुन्दर को बधाई देने का आज सभी हृदयों में चाव है, परन्तु अभी तक प्रियतम श्रीप्रिया जु के पास आए नहीं हैं। पीत वस्त्र धारण किये एक दासी श्रीस्वामिनी जु के चरणों के पास बैठी है। श्रीस्वामिनी जु के सुकोमल अरुणिम चरण जिनपर अलता महावर सुशोभित हो रही है। पैरों में मनीजड़ित , घुंघुरुदार नूपुर है तथा उंगलियों में बिछुए जगमगा रहे हैं। इन चरणों की शोभा कहते नहीं बन रही है, स्वयम प्रियतम इनकी सेवा के लिए व्याकुल रहते हैं।     दासी स्वामिनी जु के चरणों के पास ही बैठी है। स्वामिनी जु सँग प्रियतम के जन्म उत्सव की वार्ता हो रही है। सखियन अलियन ने...

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प्रेम हिंडोरा 8* श्रीयुगल प्रियाप्रियतम सरकार पुष्प शैया पर विराजित हैं। दोनो के नेत्र परस्पर उलझे हुए हैं, नेत्रों की ही मूक वार्ता हो रही है।नेत्रों से ही जैसे एक दूसरे में समाते जा रहे हैं, उनकी यह अतृप्ति यह व्याकुलता बढ़ती जा रही है। सखियाँ अलियाँ तो इनके प्रेम उन्माद को निरतंर पुष्ट करती रहती हैं। एक दासी ने गीत के स्वर छेड़ दिये हैं नवल चंद्रा नव रँग सरसावै बिहरत दोऊ कुञ्जन माँहिं राग प्रीति कौ गावै राधा राधा प्रियतम टेरत रहै वेणु मधुर बजावैं अलियन सखियन सँग नाचत मधुर मधुर मुस्कावैं दोऊ पग धरत सँग सँग दोऊ नयनन कोर मिलावैं सखियन अलियन फिरत मदमाती नित बलिहारी जावैं सभी सखियाँ उसके स्वर में स्वर मिला श्रीयुगल को उनकी ही प्रीति सुना रही हैं, जिससे वह अति प्रसन्न हो रहे हैं।सखियों ने ढोल मृदङ्ग बजाना आरम्भ कर दिया है। एक सखी श्रीयुगल को उठा कर प्रेम हिंडोरे पर विराजित कर देती है। एक कर में प्रिया जु और दूसरे कर में प्रियतम का कर पकड़ उनको हिंडोरे तक ले आती है तथा वहाँ विराजमान करती है। गीत संगीत की मधुर मधुर लहरियाँ रस लालसा का वर्धन करने लगी हैं।    श्रीप्रियतम अपनी वेणु तथा प...

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 *प्रेम हिंडोरा5*    श्यामसुन्दर अपनी प्राणा श्रीकिशोरी की प्रतीक्षा करते हुए हिंडोरे पर विराजित हो गए हैं। हिंडोरे के एक एक पुष्प से जैसे उनको प्रिया जु का स्पर्श अनुभव हो रहा है। श्रीप्रिया की सुकोमल करावलियों के स्पर्श से जैसे एक एक पुष्प पुलकायमान हो चुका है , जिसके स्पर्श से श्रीरसराज स्पंदित हो रहे हैं। आज सखियों मंजरियों को हिंडोरा सजाते हुए स्वामिनी जु ने स्वयम कुछ पुष्पों को हिंडोरे में सजाया है। हिंडोरे पर बैठकर रसराज रसमय होते जा रहे हैं।        श्रीप्रिया अभी सखियों सँग पुष्प वाटिका में है जहाँ वह अपने प्रियतम के लिए पुष्पमाला बनाने के लिए पुष्प स्वयं चुन रही है। सभी पुष्प अपनी स्वामिनी को वाटिका में देख परम आनन्दित हुए जा रहे हैं। ऐसे कौन से सौभाग्यशाली पुष्प हैं जिनको श्रीस्वामिनी का स्पर्श प्राप्त होना है, जो प्रियाप्रियतम की सेवा होने वाले हैं। आज तो स्वामिनी जु अपने हाथों से प्रियतम के लिए माला बनाने को व्याकुल हैं।     प्रियतम हिंडोरे पर बैठे अपनी फेंट में से वेणु निकाल कर वेणु वादन करने लगते हैं। जैसे ही वंशी की ध्वनि श्रीप...

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*प्रेम हिंडोरा 6* पुनः हिंडोरा सजाय सजाय बैठी यह बाँवरी , परन्तु आज अपनी प्राण प्यारी जोड़ी कु हिय हिंडोरे पर विराजित न देख अकुलाय रही। हा स्वामिनी !हा प्राणे ! दासी तो सदा से अपराध ही करती रही है स्वामिनी जु , आपकी उदारता में कबहुँ कमी न रही है , हिय के भाव कुभाव सदा स्वीकार की हो किशोरी जु। आज क्या अपराध बन गयो दासी सु , हे प्राणेश्वरी !आपके चरणों की रज भी छू न पाय रही हूँ। जानती हूँ आपकी चरण रज का स्पर्श भी मेरे भाग्य या मेरे किसी कर्म फल का हिस्सा तो नहीं है परन्तु ऐसी उदारा स्वामिनी की कृपा में कभी कमी भी तो नहीं है।    प्राणेश्वरी !क्या आज सेवा स्वीकार न करोगी। कब यह दासी आपको अपने प्राण प्रियतम सँग अपने हिय वासित हिंडोरे में गलबहियाँ दिये , झूलते हुए निहार पायेगी। हे करुणेश्वरी !आपकी करुणा तो अनन्त है, क्या आज इस हिंडोरे का स्पर्श न करोगी, क्या दासी के प्राण शीतल न करोगी स्वामिनी। क्या हिंडोरे में लगा एक एक पुष्प कुमला जाएगा ऐसे ही प्राणेश्वरी। क्या आज प्रियतम की वंशी ध्वनि सुनकर आह्लादित न हुई आप। क्यों अपनी दासी को अपनी चरण रज से भी दूर रखी हो। हे प्राणेश्वरी !जब प्राण...

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*प्रेम हिंडोरा 4*       श्रीप्रिया बहुत समय से मौन है, भीतर प्रियतम सँग ही मूक वार्ता हो रही है जिसे सखियाँ मंजरियाँ उनके हाव भाव से जानने का प्रयत्न कर रही हैं। मूक वाणी है पर हृदय भीतर कोई आह्लाद हो जैसे, प्रियतम की किसी मधुर स्मृति में को ही जी रही हों जैसे। सहसा उनकी दृष्टि एक मयूर पिछ पर पड़ती है। प्यारी जु उस मयूर पिछ को उठाती हुई बाहर उपवन की ओर चरण धरती है।    मयूर पिछ कभी कपोलों से छूने पर प्रसन्नतावत खिलखिला देती है, जैसे प्रियतम का स्पर्श ही कपोलों पर अनुभव करती है। कभी मयूर पिछ को हृदय से लगा लेती है। पुनः पुनः उसे निहारती है, जैसे प्रियतम सँग मूक वार्ता हो रही है अभी। हृदय से हृदय का प्रेम स्पंदन। मंजरियाँ स्वामिनी की इस भाव मुद्रा को निहारती हुई उनके पीछे पीछे चल रही हैं।         प्यारी जु इस मयूर पिछ को हिंडोरे पर विराजमान कर स्वयम हिंडोरे को धीरे धीरे झूला रही है।जैसे वह मयूर पिछ नहीं बल्कि श्यामसुंदर ही हैं।पुनः पुनः निहारती , पुनः पुनः मुस्कुराती हुई, हिंडोरे को झूला रही है, भीतर हृदय में प्रियतम सँग ही प्रेम हिंडोरे में विरा...

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*प्रेम हिंडोरा 3*         श्रीयुगल को नित नित नये चाव लड़ाना ही तो दासी, मञ्जरी , किंकरियों का सुख है, अपने अनन्त कोटि प्राणों का सुख श्रीयुगल का सुख। आज फिर अपने प्राण श्रीयुगल के लिए उपवन में हिंडोरा सजाया है। सभी मंजरियों का हृदय आह्लादित हो रहा है, उपवन में मन्द मन्द सुगन्धित पवन प्रसारित हो रही है। प्रत्येक पुष्प, लता, वल्लरी, वृक्ष, खग, मृग जैसे अपने प्राणों को निहारने को उन्मादित हैं। जैसे ही श्रीयुगल इस झूले पर विराजित हों हर कोई अपने हृदय में प्रेम हिंडोरे में विराजित करने की प्रतीक्षा में है, सभी को अपनी अपनी भाव सेवा देकर श्रीश्यामाश्याम को सुख देना है। उन्हें नेत्र भर निहारने की व्याकुलता प्रत्येक हृदय में हो रही है।     पवन मधुरता से भरती जा रही है। आकाश में काले काले बादल छा रहे हैं। अब तो प्रत्येक हृदय उन्मादित हुआ जा रहा है। कुछ सखियों सँग श्यामाश्याम आकर हिंडोरे पर विराजमान हो जाते हैं।      प्यारे श्यामाश्याम की निहारन से ही प्रत्येक हृदय फूल रहा है। जब प्यारे श्रीयुगल प्रेम हिंडोरे पर विराजमान होकर गलबहियाँ दिये बैठते हैं तो...

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*प्रेम हिंडोरा 2* सावन की मदमाती ऋतु में अपने प्राणधन श्रीश्यामाश्याम के सुख हेतु आज फिर मंजरियों, किंकरियों ने हिंडोरा सजाय दियो है। सभी सखियों के हृदय में उनके प्राणधन सदैव प्रेम हिंडोरे में झूलते रहवैं , जेई अलियन के हिय को आनँद होय। सखियाँ अलियाँ युगल सुख हेतु सेवा होय जावें तो युगल उनके सुख हेतु नव नव लीला करें।जेई हिंडोरे की रस्सी कोई प्राकृतिक रस्सी न होय री, जेइ तो अलियन हिय को गाढ़ अनुराग सौं सजाया जावै। नित अपने युगल सुख हेतु नव नव श्रृंगार करें, नव नव खेल करें जेई बांवरियाँ।      अपने युगलवर को हिंडोरे पर विराजित कर नव नव क्रीड़ा द्वारा उनकी रसमयी क्रीड़ा को नव नव रूप देना ही अलियन के हिय को सुख होवै। दोऊ सुकुमार, कुँवर कुँवरी अलियन के हिय श्रृंगार को धारण करने को हिंडोरे में विराजित होय गये। तनिक जोर सौं झोटा दे री बाँवरी, जेई कोमल कोमल सुकुमार प्रिया लाल जु के हिय माँहिं भी जेई झोटे को लालच होय री। जेई के सुख को सम्पादन ही तो अलियन के हिय कौ चाव होवै री। जब तक उनका हिय, उनके आभूषण, कटि किंकणी की रून झुन या झोटे सँग न सुनाई दे री , नेक सौं तेज वेग से झोटे को झुला...

हिंडोरा 1

*प्रेम हिंडोरा* प्रेम हिंडोरा ,हाँ प्रेम हिंडोरा, पुष्पों से सजा हुआ।पर पुष्प हिंडोरा क्यों नहीं सखी, प्रेम हिंडोरा कहने में जो आनँद आवे न अलियन कु , सोई अनुभव कर री। जेई प्रेम हिंडोरे में प्रेम ही पुष्प, प्रेम ही डोर , प्रेम ही हिंडोर होय गयो री। अलियन से जेई को राग, जेई को अनुराग भर भर सजायो री, अपने प्राण प्रियाप्रियतम जु के लिए *प्रेम हिंडोरा* जेई हिंडोरे पर जब सजकर हमारे प्राण हमारे युगल परस्पर आलिंगन देय , झूलेंगे री, आहा!!कितो आनँद आयगो। हमारे प्यारे प्यारी को प्रेम हिंडोरा। सभी सखियाँ मंजरियाँ प्रेम पगी इस हिंडोरे का श्रृंगार कर रही हैं। युगल के विश्राम हेतु सहचरियों ने पास ही एक पुष्प शैया भी सजा दी है।    पर इन उन्मादिनी , बाँवरी अलियन का हृदय तो आज इस हिंडोरे की झूलन से ही स्पंदित होय रह्यौ री। पुनः पुनः झूले को स्पर्श करती यह बांवरियाँ, जैसे युगल के विहार से ज्यादा आतुरता आज इनमें भरी जा रही हो। आह!!प्रेम हिंडोरा हमारे प्यारे प्यारी का प्रेम हिंडोरा सज गयो री!!उन्मादिनी हों भी क्यों न , उस प्रेम उन्मादिनी परम भाविनी अपनी प्राणेश्वरी की भाव कणिकाएँ ही तो हैं न सब , ...

श्रीहरिनाम माधुरी

श्रीहरिनाम माधुरी ************* कलिमल पावन जय श्रीहरिनाम त्रयताप नसावन जय श्रीहरिनाम हरि अभिन्ना जय श्रीहरिनाम मंगल कर्ता जय श्रीहरिनाम विघ्न विनाशक जय श्रीहरिनाम प्रेम प्रदायक जय श्रीहरिनाम प्रेम संजीवनी जय श्रीहरिनाम  परम अमृत जय श्रीहरिनाम श्रीहरि प्रदत्त जय श्रीहरिनाम   प्रेम सेतु जय श्रीहरिनाम  अमृत सञ्चय जय श्रीहरिनाम भवरोग निवारण जय श्रीहरिनाम अमंगल हर्ता जय श्रीहरिनाम पाप विनाशक जय श्रीहरिनाम कलि औषधि जय श्रीहरिनाम परम विशुद्ध जय श्रीहरिनाम प्रेम पयोधि जय श्रीहरिनाम प्रेम रसायन जय श्रीहरिनाम प्रेम सुगन्धि जय श्रीहरिनाम पुष्प पराग जय श्रीहरिनाम प्रेमिल राग जय श्रीहरिनाम रस प्रदायन जय श्रीहरिनाम  हरि कौ गायन जय श्रीहरिनाम नवल सुगन्ध जय श्रीहरिनाम द्वंद्व नाशक जय श्रीहरिनाम प्रेम अनुरागी जय श्रीहरिनाम मधुराति मधुर जय श्रीहरिनाम भक्ति धन जय श्रीहरिनाम मृदुल कलेवर जय श्रीहरिनाम रस अंकुरण जय श्रीहरिनाम चित्त हर्षण जय श्रीहरिनाम मोह विनाशक जय श्रीहरिनाम  दृष्टि प्रकाशक जय श्रीहरिनाम  प्रेम प्रसाद जय श्रीहरिनाम  नित्य अबाध जय श्रीहरिनाम हरि अनुकम्पा जय...

बिन तुम्हारे कहो

बिन तुम्हारे कहो दिल के अरमान सम्भालें कैसे दिल सम्भाले न सम्भले कहो सम्भालें कैसे जाने क्या खलबली सी मची है रूह तलक हमारी जान तक निकल रही अब सम्भालें कैसे सच है बहुत मुश्किल है राह ए मोहबत  उठते न कदम अब कहो चला लें कैसे कौन गिनेगा तुम बिन यह रुकती धड़कनें हमारी अब खुद को इन तूफानों से बचा लें कैसे अश्क़ अब एक न निकला रूह तलक जलती है ख़ामोश होती धड़कनों को अब उछालें कैसे ज़ायक़ा मिलने लगा है अब इस सुलगन का हमको दिल अपना इस आग से अब हटा लें कैसे

भजन हीन बलहीना

हरिहौं हम भजनहीन बलहीना तुम्हरौ चरण होय बल सकल हमारौ कहै बाँवरी दीना न कोऊ जप तप न कोऊ दान धर्म तुम्हरौ चरण आसा नाम तिहारे बिन कछु न सूझे देयो नाम प्रति स्वासा नाम तिहारो ही होय साँचो धन कहे निर्धन बाँवरी दासी तुम्हरी एक कृपा अवलोकन सौं मिले युगल चरण ख़्वासी

पथ चलना नहीं आवे

हरिहौं पथ चलना नाँहिं आवै मति नादान मूढ़ होय बाँवरी पुनि पुनि पथ गिर जावै होऊँ तिहारो ही जन नाथा मोहे पथ चलन समर्था दीजौ चपत लगावो या दुलरावो आपहुँ जिस भाँति चाह्वो कीजौ नाँहिं राखूँ बुद्धि बल कोऊ समर्था तुम्हरौ बल बलशाली निज चरणन ही रति मति कीजौ छुटै विषय भोग जंजाली

जय राधा

*जय राधा* *कृष्ण विलासनी कृष्ण हुलासिनी कृष्ण सुखराषिणी जय राधा* *कृष्ण विहारिणी कृष्ण सुखकारिणी कृष्ण भाषिणी जय राधा* *कृष्ण नवेली कृष्ण सहेली कृष्ण पहेली जय राधा* *कृष्ण आधारिणी कृष्ण विचारिणी  कृष्ण गहेली जय राधा* *कृष्ण वामंगिनी कृष्ण रंगिनी कृष्ण संगिनी जय राधा* *कृष्ण आह्लादिनी कृष्ण वादिनी कृष्ण तरंगिनी जय राधा* *कृष्ण उमगनी कृष्ण विलसनी कृष्ण आनन्दिते जय राधा* *कृष्ण सेव्या कृष्ण सेविता कृष्ण वन्दिते जय राधा* *कृष्ण मोहिनी कृष्ण मनहरिणी कृष्ण सुरभिता जय राधा* *कृष्ण सम्पदा कृष्ण प्रेमलता कृष्ण मनमीता जय राधा*

श्रीमहामन्त्र में निभृत

*श्रीमहामन्त्र युगल सुख में निभृत पौढ़ाई*   *हरे कृष्ण*   श्रीकृष्ण के रस लोलुप्त हिय के ताप को हरण करने वाली, हे कृष्ण ताप हरणी ,अपने प्रियतम के हिय ताप का हरण करो स्वामिनी *हरे कृष्ण*  हे हरे ! हे राधिके ! आप श्रीप्रियतम को सुख सेज का विलास प्रदान करो , *कृष्ण कृष्ण*  हे रसदायिनी ! श्रीकृष्ण के समस्त सुखों का सार आप हो। श्रीकृष्ण सुखकारिणी , श्रीकृष्ण हिय आह्लादिनी , निभृत रस विस्तारिणी ! आपका रोम रोम कृष्ण मई है। आपके रोम रोम में प्रियतमके सुख का ही विलास है, हृदय मन्दिर की सुख सेज पर प्रियतम कृष्ण , श्यामसुंदर संग रस विलास करो *हरे हरे* हे हरिभामिनी ! हे पिय उरहरणी ! आपके चंचल नेत्रों का विलास प्रियतम के हृदय का हरण करने वाला है। उनके समस्त सुखों का विस्तार करने वाली हे राधिके ! *हरे राम*  हे हरे , प्रियतम को रमण प्रदान करो *हरे राम* हे रमणे ! हे केलि सुखवर्षिणी ! प्रियतम की समस्त रस आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाली हे पूर्णे ! हे रमणे ! *राम राम* प्रियतम की समस्त सुख लालसाएँ, सुख सेज की पौढ़ाई, समस्त निभृत सुख , रमण रमण , हे रमणे ! *हरे हरे* हे हरणी ! हे अनुपमे ...

कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा

*कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा* कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा इस प्रीति के गीत सदा गाऊँ हे प्रियतम एक ही विनती है उस श्रृंगारिणी का श्रृंगार न हो पाऊँ तो उस मधुर ललित श्रृंगार की एक झरण ही करदो उस श्रृंगारिणी के चरण कमल का कोई श्रृंगार न हो पाऊँ उन चरणों की रज हो जाऊँ नहीं कोई योग्यता ऐसी  कोई पुष्प बनूँ बनमाल का मैं उन उलझे महके श्रृंगारों की मीठी सी पुलकन हो जाऊँ मधुर कमलिनी जिसे चरण धरें नहीं नूपुर का हुई घुँघरू कोई एक खनक रुनक ही कर देना राधा राधा कह इठला जाऊँ जिस हृदय में नाम की गूँज उठे जिस जिव्हा पर वह गीत सजे जिस भाव से हो श्रृंगार मधुर चरण रज बाँवरी बन जाऊँ कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा इस प्रीति के गीत सदा गाऊं

प्रीति हमारी काँची

हरिहौं प्रीति हमारी काँचो काँची देह बनी माटी की रँग चढ़त न साँचो मूढ़ बाँवरी जगति धावै हरि सौं प्रेम न रांचो अधम जाने न नेम प्रेम कौ कोरा ज्ञान ही बांचो खाली पड़ो नाम कौ खाता नाथा आपहुँ जाँचो आपहुँ निभावो रीति प्रेम की रीति तुम्हरी साँचो

बाँवरी भजन ते हीन

हरिहौं बाँवरी भजन ते हीना भावै स्वाद जगति कौ मूढ़ा जनमन खोटा कीन्हा जिव्हा चाहै स्वाद बहु भाँतिन हरिनाम नाँहीं लीन्हा अहंम की पुतली बाँवरी खोटी कबहुँ बनै न दीना हिय भरै कल्मष पतित बाँवरी राखै चित्त मलीना कौन भाँति हिय प्रेम रस उमगे मार्ग प्रेम चली ना

ललित नवनीत सुं

*ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये*    ललित नवनीत , हाँ री तृषित प्रियतम की सकल रस लालसाएँ , ललित श्रृंगार, ललित नवनीत से ही पूर्ण हो सकती हैं। यह ललित नवनीत, ललित श्रृंगार , सम्पूर्ण लालित्य श्रीप्रिया के हृदय से ही झरित हो रहा है। जैसे जैसे प्रियतम की तृषाएँ गाढ होती जाती हैं, त्यों त्यों प्यारी जु का यह ललित अनुराग , ललित वर्षण और और ललित, और और मधुर होता जाता है। श्रृंगार कोमल कोमल होता जाता है, वर्धित होता जाता है।    हे प्यारी *ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये* अपने इस ललित अनुराग की चाशनी में लपेट लपेट, प्रेम केलि रूपेण मधुर मधुर व्यंजन श्रीप्रियतम को पवाइये। अपनी कोमलता से, अपनी सरसता से , अपने श्रृंगार से प्रियतम के क्षुधित , तृषित हृदय को रसमयता प्रदान कीजिये। आप ही तृषातुर प्रियतम को अपने अनुराग में रंग कर , इस ललित नवनीत से पोषण करने वाली हो। हे लालित्य वर्षणी ! हे मधुरे ! हे नवनीता आपके रसवर्षण से , आपके श्रृंगार की नवल नवल सुगन्ध से ही , श्रीप्रियतम की लालसाएँ वर्धित होती जा रही हैं, उसी के अनुरूप आपकी सुख प्रदायनी लालसाएँ भी ललित , ललित, मधुर अनुरंजित...

हे प्यारी रस भामिनी

1 हे प्यारी रस भामिनी दीजौ नवल सिंगार  तृषित रूप-क्षुधित रसिक पिय लोचत नव रससार नवल नवल सिंगार नित नवल नवल रूप रसरीति मेटो सकल हिय ताप किशोरी अलबेली ललित रँगी प्रीति मनोरमे रस बढावै सु केलि नवेली नित गाईये बाँवरी चाह्वै स्वामिनी ललित नवीनत सुं लपेटि केलित तृषा पवाईये

गोरे लाल जोरि2

2 गौरे लाल जोरि अति ललित सुं बसन्त साजै री ललित सिंगार ललित रस बरसै ललित रँग राजै री मुदित युगल नवल रँग रंजित नवल फूलैर उमागै री पीत वसन ललित हसन चित्त हरणी छबि लागै री अलबेली जोरि ललित विलास धमार नवरँग झरि भावै री बाँवरी हरिदासी दासी कृपा सौं नित नवल केलि गावै री

माधुरी कुमुद कली

*माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*    सम्पूर्ण माधुर्य , सम्पूर्ण लालित्य भरित श्रीप्रिया , रसिकनी कुमुदिनी रसभामिनी विराज रही हैं। इस रस भरित , उमगित कुमुदिनी को विलसने की सम्पूर्ण कलाएँ आवें री। सम्पूर्ण रस पण्डिते , श्रीप्रिया जु। कोक कला निपुणे , अपने सम्पूर्ण कला विलास सँग विराजी हुई हैं, श्रीप्रियतम की वक्ष स्थली पर।     रस भँवर श्रीप्रियतम इस सुरँगीनि कुमुदिनी के साथ नवल नवल रस भाव से अनुरागित हो नवल नवल श्रृंगार का रसपान करते अघाते नहीं हैं। इस कुमुदिनी रस कलिका का सुरँग रँग, क्षण क्षण नवीन , क्षण क्षण प्रफुल्लित होता जाता है, वहीं रस भँवर इस कुमुदिनी के रस पान हेतु तृषातुर ह्वै जावे।      बलिहारी ! बलिहारी इस रस रँगीनि ललित जोरि की। बलिहारी ! बलिहारी इस ललित श्रृंगार की। रस की लालसा बढ़ती जावे .....रस वर्षण , रस उमगन की बलिहारी ! चलो री गावें *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री* *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री* *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*......... रुके ही न यह ललित रस वर्षण.....

आज नाचत दोऊ

आज नाचत दोऊ रँग रँगीले प्रेम रँग रँगी नव जोरि दोऊ लागत अति छैल छबीले ताता थईथई सँग पद राखत ताल मिलाय जोरि विलसै भर भर रँग उड़ावत दोऊ सखिन सबहि सुख आँखिन निरखै बलि बलि गावत लेत बलैयां नित्य नवल नव रँग विलास श्यामाश्याम प्राण दोऊ मोरे हिय निकुंजन करो सुखरास

रस भींजत दोऊ

रस भींजत दोऊ रँग रँगीले मची रँगन कौ कीच प्रेम बेलि बाढ़त नव भाँति नित्य नवल रस नव सींच उड़त गुलाल अबीर कुमकुम रँगन रँग मच्यो चहुँ ओर नवल रस भीनी सब अलियन रस भींजे युगल किशोर हो हो होरी बजत बधाई बाढ़त बहु भाँतिन रँग विलास श्यामाश्याम प्राण दोऊ मेरे हिय निकुंजन नित्य सुखरास

ललित रस

*ललित रस* *ललित किशोरी ललित किशोर* *ललित निशा ललित भोर* *ललित श्रृंगार ललित व्योहार* *ललित हसन ललित वसन* *ललित वेणु ललित रेणु* *ललित नाद ललित वाद्य* *ललित केलि ललित बेलि* *ललित कुँज ललित गूँज* *ललित थाप ललित नाच* *ललित झँकार ललित रससार* *ललित झलकन ललित पुलकन*   *जयजय ललिते जयजय ललिते*

आज बिहरत वन कुँज

आज बिहरत वन कुँज जोरि अलबेली आलि जोरि अलबेली नवल रँग खेली आलि नवल नवल रँग की रेलारेली आलि झूमत किसोर दोऊ झूमत सहेली महकत कुसुम चहुँ ओरे गुलाब चमेली जोरि अलबेली री मोरी जोरि अलबेली

आलि री अलबेली जु

आलि री अलबेली जु मोरे हिय कुँज खेलिये हिय कुँज खेलिये प्रियतम सँग खेलिये प्रियतम सँग खेलिये ललित रँग खेलिये ललित रँग खेलिये सुरँग रँग खेलिये सुरँग रँग खेलिये नवल रँग खेलिये आलि री अलबेली जु मोरे हिय कुँज खेलिये

श्रीयुगल को लोभ

*श्रीयुगल कौ लोभ*  श्रीयुगल कौ लोभ , जेई सुन चकित न भयो री । जाने हैं री सब   अलियाँ री , इन बिहारी बिहारणी जु को क्या लोभ होवै री , याको लोभ होय नित्य बिहार। यही बिहार का लोभ प्रियाप्रियतम को नित्य बिहारी बिहारणी करै री। भरे रहें यह क्षण क्षण बिहार में। याको यह लोभ बढतो ही जावै री। जेई बिहार ही युगल को वास्तविक सुख होय री। अलियन हिय को सुख होय री।     जेई बिहार जितनो गाढ़ होतो जावै जेई के हिय की तृषा बढ़ती जावै री , लोभ बढतो जावे री , मिले मिले ही मानो कबहुँ न मिले री। ऐसो लगे कोई सिंधु में डूब डूब जावे री पर एक बूंद की तृप्ति न होवै री। जेई प्रेम सिंधु, याको बिहार होय गयो री। जितना बिहार गाढ़ होय गयो उतनी अतृप्ति भीतर *मिलत मिलत अकुलाय उमगि......* श्रीयुगल को स्वाद बिहार युगल हिय उन्माद बिहार युगल हिय आह्लाद बिहार       यह बिहार ही इनको सम्पूर्ण खेल होय री। यही बिहार ही इनको स्वाद , आह्लाद होवै री। नित्य यही उन्माद में भरे रहवैं। यही बिहारणी आह्लादिनी की भाव वृत्तियाँ जेई बिहार को भर भर गावैं री , जेई बिहार को रचावैं, यही बिहार को सजावैं री। य...

श्यामाश्याम हमारे

*प्राणधन श्यामाश्याम हमारे* प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे जगति का धन कितनो जोड़ो सँग चले न आगे भज भज युगल कौ नाम बाँवरी भाग अमोलक जागे निशिदिन बाढ़त धन यह सवाया इक दिन नहीं घटा रे प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे नाम धन युगल कौ जोड़ बाँवरी अपनी स्वासा स्वासा युगल चरण विश्राम मिलेगा एक दिन हिय धार ले आसा युगल नाम ही होय साँचो धन देव मुनि कहत बीचारे ( विचार करके) प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे बड़े भाग सौं मिली बाँवरी मानुस की यह काया  उससे घनी कृपा भई जो मिली श्रीगुरु चरणन छाया मिट गई भटकन जन्म जन्म की सीस धरी गुरु द्वारे प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे सन्तन भक्तन कौ सँग पाया हरि गुरु कृपा अकारण हरिनाम की औषध पाई होवै भव रोग निवारण गुरुगौरांग की जय जयकार बाँवरी स्वासा स्वास पुकारे प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे