तेरा इश्क़

जब जब दिल यह पिघलता सा है इन आँखों से कुछ बहता है 
इक टीस सी उठती है तेरे बिना जीने में दिल यही कहता है

नहीं रोक पाते हम कभी इस दिल में उठते हुए तूफानों को 
कुछ आँखों से बहता है और कुछ दिल लफ़्ज़ों में कहता है

सच है सुकून न मिला है इस रूह को मुद्दत से अब तलक
मेरे ज़िक्र में मेरे फिक्र में बस नाम तेरा ही रहता है

यह भी सच है कि नहीं इश्क़ मुझे करना आया है कभी
पर तुमको इश्क़ है यह सुकून रूह को रहता है

कब तलक भीगी सी सिसकती सी  रहेंगी यह साँसें
हूँ मैं खामोश बस तेरा इश्क़ ही लिखता रहता है

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