कैसे
कैसे .........
अब उठते यह इश्क़ के तूफान संभालूं कैसे
यह भी सच है कि फलसफा ए इश्क़ समझी नहीं
तुम जी कहो कायदे इश्क़ के निभा लूँ कैसे
सुना है बहती हुई नदियों का रुकना ठीक नहीं
नहीं हिम्मत फिर इन लहरों को उछालूं कैसे
रोज ही इक इक चिराग बुझता है मेरी महफ़िल का
बढ़ते हुए अंधेरो को रोशनी में सजा लूँ कैसे
दिन ब दिन टूटता ही जाता है सब्र इस दिल का
नहीं बस में मेरे यह कम्बख़्त मना लूँ कैसे
चन्द परदों में छिपा रखे हैं हालात ए दिल अपने
तू ही बता इक झटके में इन्हें हटा लूँ कैसे
मैं तो खामोश हूँ जाने भीतर कौन उछलता रहता है
दर्द ए दिल फिर अपनी जुबां से मैं गा लूँ कैसे
मेरा मर्ज़ तू ही बस तू ही दवा है मेरी
इतना मीठा है दर्द ए इश्क़ छुड़ा लूँ कैसे
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