उत्सव

उत्सव

कैसा उत्सव
ताप का उत्सव
हाँ आज यही उत्सव सजेगा
भीतर का उछलता लावा
लफ्ज़ बन जाने कहाँ कहाँ बिखरेगा

हाँ भर दो सब ताप यहाँ
भीतर की शरद तुम हो जाओ
सूखा मारुथल इक तपता सा मैं
पावस की झरन तुम हो जाओ

चलो सारी अग्न मैं पी जाऊँ
शीतल सा सफर तुम हो जाओ
तुमको ही रँगना है रंगरेज मेरे
इश्क के रंगों में तुम भर जाओ

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