वृथा भई सब स्वासा
हरिहौं वृथा भई सब स्वासा
घोर कल्मष क्लेश हिय माँहिं कबहुँ होय परकासा
नाम भजन की बात न निकसै स्वांग बनायो भारी
मीठो मीठो रूप बनावै बाँवरी भीतर खारी खारी
झूठ कपट मिथ्या बकवाद यही बाँवरी दिन रैन लगी
सोई रैन दिवा पाँव पसारै भजन कौ क्षणहुँ न जगी
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