भीगी सी इक रात

भीगी सी इक रात हमने आज फिर बिताई है
जाने क्यों दिल ने तेरे आने की उम्मीद लगाई है

कतरा कतरा लहू का तुझसे मिलने को प्यासा है
रिसते हुए सब ज़ख्मों की तू ही एक दवाई है
भीगी सी....

मुद्दत से न तुम आए न कोई इशारा समझे हम
जब इश्क़ नहीं है इस दिल में फिर क्यों उम्मीद जगाई है
भीगी सी.....

काश बहते बहते इन अश्कों सँग ज़िन्दगी भी बह निकले
सुलगते से इन अरमानों पर क्यों बौछारें बरसाई हैं 
भीगी सी.....

चलो बहुत हुआ यह खेल अभी मुद्दत से तुमने खेला जो 
सब जीत तेरी बस हार मेरी अब जान पर बन आई है
भीगी सी......

सच है सच है नहीं काबिल हम तेरे इश्क़ के कभी
मुझसे मिला भी क्या है साहिब बस केवल रुसवाई है
भीगी सी....

चलो बहने दो इन अश्कों को पानी से लहू के कर देना
तेरा नाम निकले हर साँस के साथ बस यह उम्मीद लगाई है
भीगी सी.....

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