बस तुम

बस तुम

और क्या लिखूँ जो तुम जानते ही न हो
दिल में रहते हो पर मुझसे छिपे रहते हो

जानते हो बात सब बिना ज़ुबान से कहे
छिप छिप कर दिल में ही कहते रहते हो

इक नज़र भर देखने को है प्यासी यह आँखें
खेल मुझसे छिपने छिपाने के खेलते रहते हो

चलो मैं न बिक पाई पर तुम खरीद लो मुझको
हो सौदागर इश्क़ के तुम सौदे करते रहते हो

पढ़ लो इक बार मेरी आँखों में भी चेहरा अपना
मेरे होकर भी मुझसे क्यों अजनबी रहते हो

सच है अब सम्भलती नहीं मेरी धड़कनें मुझसे
बनकर अरमान मेरी रूह में मचलते रहते हो

क्या छिपाया है बोलो मैंने तुमसे हाल ए दिल
तुम ही लिखवाते हो और तुम ही पढ़ते रहते हो

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