नाम संकीर्तन

*नाम संकीर्तन*

      कलियुग पावन अवतार श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी ने कलियुग के ताप से त्रस्त जीवों के समस्त तापों का हरण करने के लिए हरिनाम पर ही बल दिया है। श्रीहरिनाम समस्त विद्याओं का सार है। श्रीहरिनाम कोई जड़ वस्तु न होकर स्वयं प्रभु का ही चैतन्य स्वरूप है। महाप्रभु जी ने इस बात को दृढ़ता से प्रकट किया है कि नाम तथा नामी में कोई भेद नहीं है। ईश्वर का नाम जन्मों से हमारे हृदय में संचित हुए मल का मार्जन करने वाला है। श्रीहरि का नाम अति सहज है , यह सहजता भी भगवत कृपा से ही प्रकट होती है। सब प्रकार की भौतिक और जड़ कामनाओं का त्याग कर करुणाशील श्रीप्रभु से अपना नाम रस प्रकट करने की प्रार्थना करें , श्रीचैतन्य स्वरूप में तो श्रीप्रभु अपनी समस्त करुणा लुटाने को ही प्रकट हैं। मेरे प्रभु की भक्त वत्सलता तो देखिए ,अपनी लीला में एक एक भक्त के चरण छूकर स्वयं हरिनाम की भिक्षा मांग रहे हैं। भाई तेरे पावँ पडूँ एक बार हरि बोल......
एक बार हरि बोल.......
हरि बोल हरि बोल हरि बोल.....

   श्रीप्रभु तो परम् करुणामयी हैं परंतु श्रीचैतन्य स्वरूप में इनकी करुणा तो समाये नहीं समाती। गौर कृपा अति सहज ,आश्रय केवल श्रीहरिनाम का ही, श्रीगौर नाम का ही। श्रीहरि की भक्त वत्सलता का सागर श्रीगौर रूप में इस प्रकार तरंगायित हो रहा है जिसकी एक बूंद का स्पर्श ही जीव को नामामृत में डुबो कर उस रसराज और महाभाव के साम्राज्य में प्रकट करने की क्षमता रखती है। 

   श्रीचैतन्य देव ने अपने शिक्षा अष्टक में नाम संकीर्तन को ही परम तप कहा है ।यही नाम संकीर्तन रूपी तप कलियुग में सर्वथा कल्याणकारी है। पुनः पुनः प्रभु जीवों को भगवत प्रेम प्राप्ति की सहज कुंजी श्रीहरिनाम प्रदान करते हैं। ऐसे करुणाकर प्रभु श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की जय हो!परम् कल्याणकारी श्रीहरिनाम  संकीर्तन की जय हो!

यज्ञ तप साधन कठिन अति कलियुग माँहिं हरिनाम सहज रे भाई !!

सकल साधन छोड़ देय अबहुँ  बाँवरी हरिनाम की जोड़ कमाई !!

हरिनाम रूप हरि आपहुँ आय जी नाम संकीर्तन प्रथा चलाई !!

स्वास स्वास सों भजो हरिनाम भगवत मिलन की विधि बताई !!

हरिकृपा ते हिय हरिरस उमगावै नाम भजन कीजौ चित्त लाई !!

हरिनाम ही सार होय वेदन को हरिनाम में हरि की कृपा समाई !!

जय जय श्रीगौरहरि

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून