नकली चेहरे
नकली चेहरे
एक चेहरे पर जाने कितने नकाब लगाता हूँ मैं
अन्दर कुछ और हूँ बाहर कुछ और दिखाता हूँ मैं
जिया है मुद्दतों से कई झूठे से चेहरों के सँग
हाँ उछाले हैं नए नए मैंने कितने ही रँग
मेरा चेहरा ही कैसा है भूल जाता हूँ मैं
अन्दर कुछ और.......
मेरी असलियत तो मैं जानूँ या है खुदा को पता
हूँ खतावार बड़ा करता हूँ रोज कितनी खता
बाहर हैवान हूँ भीतर के इंसा को
दबाता हूँ मैं
अन्दर कुछ और........
हाँ नकाबों में बहुत खुद को छिपाया है मैंने
रँग नया रोज पहन खुद को रँगाया है मैंने
समझो कोई खेल नया रोज ही खेल जाता हूँ मैं
अन्दर कुछ और........
है तुझमें थोड़ी भी समझ तो रँग असली पहचान लेना
झूठी बातों में न आना अब सच्चाई भी जान लेना
बात कुछ और हो कुछ और ही बताता हूँ मैं
अन्दर कुछ और........
कभी सोचता हूँ कि मेरा भी कोई वजूद है क्या
जिस्म में रूह नहीं कोई महज़ एक ताबूत है क्या
अपनी रूह की अर्थी को ही रोज उठाता हूँ मैं
अन्दर कुछ और.......
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