यह सुलगन

हाँ कुछ अंगार तो गिरे
सुलगता है कुछ तो
पर जलता नहीं
कुछ धुआँ सा उठता है
कुछ पिघलता है अंदर ही अंदर
कुछ बहता है आँखों से
धीरे धीरे सुलग जाए
कभी तो जल जाएगा
अभी यह सुलगन बनी रहे
याद रहे अपनी मंजिल
की जल जाना है
यह सुलगन बनी रहे
यह मचलन बनी रहे

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून