गौर कृपा
गौर कृपा
गौर कृपा क्या है । श्री गौरांग प्रभु का एक नाम ही कोटि जन्म के पाप भस्मीभूत कर देता है तो उनका नाम जिव्हा पर आना ही वास्तविक गौर कृपा है। श्री कृष्ण प्रेमावतार हैं परंतु उनका कृष्ण होना भी उनको तृप्त न कर सका तो प्रभु गौर हो गए। रसराज महाभाव की पूर्णता ही गौर प्रभु । नाम और नामी में कोई भेद नहीं तो गौर नाम और गौर भिन्न नहीं। गौर नाम का जिव्हा पर आना ही गौर कृपा है।
क्या गौर कृपा के होते भी जीव को माया खींच सकती है ? नहीं कदापि नहीं। ईश्वर विमुख जीव को ही माया प्रताड़ित कर सकती है परंतु गौर नाम जिसकी जिव्हा पर नृत्य करे , अपितु एक बार भी प्रकट हो जावे तो माया का कोई प्रभाव नहीं हो सकता। नाम मे ही नामी का खेल है। जब तक नाम मे पूर्ण निष्ठा न होतब तक नामी अपना स्वरूप प्रकट नहीं करता। जीव का ईश्वर के प्रति समर्पण उसका स्वयम का नहीं है वरन प्रभु स्वयम ही उसे अपने रस में खींचते हैं। तो महावदान्य श्री गौरांग प्रभु का नाम जिस हृदय में प्रकट हो वहां माया की जड़ता प्रभावहीन ही है क्योंकि माया स्वयम ईश्वर की एक शक्ति ही है।
हे दीनदयाल ! हे कृपालु ! हे पतितपावन ! हम सबकी हृदय ज्वाला को आपका पावन नाम ही तृप्त कर सकता है। प्रभु आप स्वयम ही नाम रूप में इस जिव्हा पर विराजिए और हम पतित जीवों को अपना कृपा पात्र करें। आपकी और से तो कृपा में कभी न्यूनता हुई ही नहीं परन्तु यह भावशून्य हृदय ही आपके प्रेम के आस्वादन बिना अतृप्त है। इस हृदय में अपनी तृषा का संचार कर सुख लीजिये प्रभु। निताई चाँद सबके हृदय में गौर कृपा प्रकाशित करते रहें।
जय निताई जय गौर
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