हरि मैं देखी मन की चाल

हरि मैं देखी मन की चाल
पकर पकर भोगन ले जावै करो सासन तत्काल
नहीं समर्थ कछु हरि मैं तुम समर्थ सब काल
अपने चरणन चेरी कीजौ न खावै काल व्याल
जड़ता नासै सेवा भजन बनै हे नाथा दीनदयाल
बाँवरी भोगन की गठरी नाथा हिय कल्मष ताप उबाल

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