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Showing posts from January, 2023

सरस्वती वंदना

जयजय वीणा वादिनी जयजय शुभर वासिनी जयजय लीला गायिनी जयजय केलि रागिनी जयजय नवकौतुक रचायिनी जयजय विलास उमगाविनि जयजय सुरस निनादिनी जयजय हरिकला रसलोभिनी जयजय वीणा हस्त शोभिनी जयजय सेवा प्रदायिनी जयजय नवल रसायिनी जयजय बुद्धि प्रकाशिनी जयजय हरे जयजय हरे जयजय मधुर सेवा वरे

रसिकन कौ सिरमौर

रसिकन को सिरमौर निताई रसिकन को सिरमौर दोऊ हाथ उठाये गावै गौर गौर हरि गौर नाम रस ऐसो हिय उमगावै दियो मस्त बनाई दोऊ हाथ उठाय झूमत रह्यौ प्रेम मग्न निताई कबहुँ प्रेम मग्न होय डोले कबहुँ बहावै नीर हा हा गौर कह इत उत डोले हिय उठे प्रेम की पीर

हरि नामोन्माद

*हरिनामोन्माद* कलियुग में श्रीहरिनाम संकीर्तन यज्ञ द्वारा जीव को भगवत प्रेम सुलभ करवाने वाले श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी की जय हो! निर्मल भक्ति निर्मल हृदय में ही वास करती है। श्रीहरिनाम रस केवल शुद्ध हृदय ही पान कर सकता है। जन्मों से जड़ता में बंधा हुआ जीव जब भव ताप से छटपटाता हुआ हरिआश्रित होता है तो यही भगवत नाम उसके हृदय को भगवत रस से सराबोर कर विशुद्ध नाम प्रदान करता है।     नाम के प्रभाव से कल्मष नाश हो हृदय शुद्ध होता है , भगवत रस का स्पर्श, भगवत रस का उन्माद जब शुद्ध हृदय में उठता है तो अश्रु बन बह निकलता है। जब जीव अपने प्राण प्यारे प्रियतम के विरह में रोता है तब यह अश्रु पीड़ा के ना होकर भगवत रस का वर्धन करते हैं। भगवत विरह में निकले अश्रु भक्ति का निर्मल रस है। रस का आह्लाद है। ऐसा रस श्रीमन चैतन्यदेव की लीला में साक्षात प्रकट है , जब गौरहरि अपने प्रभु के विरह में  अश्रुपात करते हैं। उनके अश्रु नेत्रों से पिचकारी के समान बहते हैं। श्रीहरि विरह में निकलते हुए अश्रु मणी माणिक से भी अधिक अमूल्य हैं , क्योंकि मणी माणिक तो जगत की भौतिक वस्तु है परन्तु निर्मल हृदय स...

नाम संकीर्तन

*नाम संकीर्तन*       कलियुग पावन अवतार श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी ने कलियुग के ताप से त्रस्त जीवों के समस्त तापों का हरण करने के लिए हरिनाम पर ही बल दिया है। श्रीहरिनाम समस्त विद्याओं का सार है। श्रीहरिनाम कोई जड़ वस्तु न होकर स्वयं प्रभु का ही चैतन्य स्वरूप है। महाप्रभु जी ने इस बात को दृढ़ता से प्रकट किया है कि नाम तथा नामी में कोई भेद नहीं है। ईश्वर का नाम जन्मों से हमारे हृदय में संचित हुए मल का मार्जन करने वाला है। श्रीहरि का नाम अति सहज है , यह सहजता भी भगवत कृपा से ही प्रकट होती है। सब प्रकार की भौतिक और जड़ कामनाओं का त्याग कर करुणाशील श्रीप्रभु से अपना नाम रस प्रकट करने की प्रार्थना करें , श्रीचैतन्य स्वरूप में तो श्रीप्रभु अपनी समस्त करुणा लुटाने को ही प्रकट हैं। मेरे प्रभु की भक्त वत्सलता तो देखिए ,अपनी लीला में एक एक भक्त के चरण छूकर स्वयं हरिनाम की भिक्षा मांग रहे हैं। भाई तेरे पावँ पडूँ एक बार हरि बोल...... एक बार हरि बोल....... हरि बोल हरि बोल हरि बोल.....    श्रीप्रभु तो परम् करुणामयी हैं परंतु श्रीचैतन्य स्वरूप में इनकी करुणा तो समाये नहीं समाती। गौ...

राधा भाव कांति धारी

राधाभाव कांति धारी श्रीकृष्ण चैतन्य प्रकटे नदियाबिहारी श्रीकृष्ण चैतन्य गौरांग पीत पट श्रीकृष्ण चैतन्य कृष्णप्रेमोन्मत्त श्रीकृष्ण चैतन्य कृष्ण कृष्ण उच्चारें श्रीकृष्ण चैतन्य सचिसुत मतवारे श्रीकृष्ण चैतन्य भक्ति का उन्माद  श्रीकृष्ण चैतन्य प्रेम का आह्लाद श्रीकृष्ण चैतन्य पतितपावन करें श्रीकृष्ण चैतन्य मुख कृष्णनाम धरें श्रीकृष्ण चैतन्य मञ्जरीभाव प्रदाता श्रीकृष्ण चैतन्य कलयुग त्रिताप त्राता श्रीकृष्ण चैतन्य महामन्त्र प्रदाता श्रीकृष्ण चैतन्य निमाई अनुज भ्राता श्रीकृष्ण चैतन्य नदिया के रत्न श्रीकृष्ण चैतन्य विष्णुप्रिया धन श्रीकृष्ण चैतन्य त्रिदण्ड धारी श्रीकृष्ण चैतन्य कलिजीव उद्धारी श्रीकृष्ण चैतन्य गौर गौरांग नाम जो जन लहे उच्चार सकल पाप भस्म होवै पावै प्रेम सार भज गौरांग भज गौरांग गौरांग निहार महामन्त्र नित्य प्रति मुख राखो धार

सब संत भक्तन कौ नेह

सब संत भक्तन को नेह मिले गौर कृपा भई अति भारी बाँवरी अबहुँ जाग रह्यौ बिन भजन जन्म बिगारी सब सन्तन चरणन विनय करूँ नाम व्यसन मोहे होय हरिनाम धन नित नित बाढ़े ऐसो असीस देयो मोय सन्तन भक्तन की चरण रेणु बाँवरी अपने सीस धराय भोगी मलिन जीव अति भारी कबहुँ उर हरिरस आय

सर्व क्लेश हारी

सर्व क्लेश हारी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम कीर्तन बिहारी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम लौह दण्ड धारी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम सर्व तीर्थ अवतारी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम गौर दण्ड भंगी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम कृष्ण प्रेम रँगी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम गौड़ देश त्राता जय जय प्रभु नित्यानन्द राम बांका राय प्रिय भ्राता जय जय प्रभु नित्यानन्द राम अगति जन गति जय जय प्रभु नित्यानन्द राम कोटि ब्रह्मांड पति जय जय प्रभु नित्यानन्द राम भक्ति अलंकारी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम पुष्पमाला धारी जय जय प्रभु नित्यानन्द राम शुद्ध नाम दाता जय जय प्रभु नित्यानन्द राम श्री जगन्नाथ भ्राता जय जय प्रभु नित्यानन्द राम वसुधा जीवन जय जय प्रभु नित्यानन्द राम आनन्द वर्धन जय जय प्रभु नित्यानन्द राम संधिनी स्वरूप जय जय प्रभु नित्यानन्द राम संकर्षण रूप जय जय प्रभु नित्यानन्द राम आदि गुरु बलरामा जय जय प्रभु नित्यानन्द राम गौर गुण धाम जय जय प्रभु नित्यानन्द राम राधा मन्त्र दाता जय जय प्रभु नित्यानन्द राम सिद्ध देह प्रदाता जय जय प्रभु नित्यानन्द राम अगति जन गति जय जय प्रभु नित्यानन्द राम जान्हवा पति जय जय प्रभु नित्य...

विनय सुनो निताई नाथा

विनय सुनो मेरो निताई नाथा हाथ देय मोहै रखावो  माया डाकिनी की नित चाला सों मेरो सम्भार करावो भव बाधा सों भजन बने न कोऊ हल और दण्ड चलावो गौर चरण सों नेहा लगे ऐसो तुम अपनी लाज बचावो गौर प्रेम प्रदाता होवो तुम नेक प्रेम मो हिय उपजावो गौर चन्द्र को नाम रटे जिव्हा अनवरत ऐसो बनत बनावो

गौर नाम में रस

गौर नाम मे रस अति भारी पिये होय मतवारा  गौर गौर गौर भज री बाँवरी गौर ही परम सहारा गौर कृपा सों नाम हिय आवै मुख सो जाय उच्चारा गौर शरण पड़ अबहुँ बाँवरी मानुस जन्म बिगारा गौर नाम ही रतिमति कीजौ नाम गौरचन्द्र उजियारा प्रेम सिंधु हिय माँहिं उमगावै हो होय गौर को प्यारा

मेरे गौर गोपाल जी

मेरे गौर गोपाल जी मुझे देना सदा सहारा पल भर भी भूले ना कभी हरे कृष्णा नाम प्यारा दिन हो चाहे रात हो हरे कृष्ण गाऊँ मैं जो हो तेरी कृपा तो तेरा नाम पाऊँ मैं पावन तेरे इस नाम ने कितनों को भव से तारा मेरे गौर गोपाल जी मुझे देना सदा सहारा पल भर भी भूले ना कभी हरे कृष्णा नाम प्यारा महामन्त्र की धुन सदा मन में मेरे रहे गौर हरि तेरी कृपा मेरे जीवन में रहे पल भर भी छूटे नहीं हो तेरा नाम प्यारा मेरे गौर गोपाल जी मुझे देना सदा सहारा पल भर भी भूले ना कभी हरे कृष्णा नाम प्यारा मुझ पतित अधम को भी अपना नाम देना मेरी यही विनती है चरणों में ही रख लेना इक बार सिर झुकाऊँ तो उठे ना कभी दुबारा मेरे गौर गोपाल जी मुझे देना सदा सहारा पल भर भी भूले ना कभी हरे कृष्णा नाम प्यारा

हे पतित पावन गौरहरी

हे पतित पावन गौर हरि हम पतितों का उद्धार करो हो दीन अधमों की ठौर तुमहीं नाम करुणाकर साकार करो कृपा करो करुणेश हरि जन्मों की जड़ता कट जाए मन हट जाए विषय विकारों से जिव्हा हरि हर गाए न भटकें हम भव सिंधु में देकर भक्ति भव पार करो हे पतित पावन ...... जन्मों से पतित हैं नाथ बड़े हम मलिनों के त्रिताप हरो बहे हरिनाम रसधार सदा ऐसी करुणा हरि आप करो मन भीजा रहे सदा हरि रस में तुम नाम रूप अवतार धरो हे पतित पावन ......  जन्मों की पीड़ा हरो भगवन मुझ निर्बल का तुम्हीं बल हो राखो अब ही निज चरणन में जीवन भंगुर यदि न कल हो भक्ति देकर निज चरणों की मानव जीवन का सार करो हे पतित पावन गौर हरि हम पतितों का उद्धार करो हो दीन अधमों की ठौर तुमहीं नाम करुणाकर साकार करो

आपकी करुणा

*आपकी करुणा* हे पतितपावन गौर हरि! आप अनन्त कोटि करुणामयी हो। आपकी करुणा का बखान तो  कोटिन कोटि जिव्हा लेकर कोटिन कोटि जन्मों में भी नहीं हो सकता। आपका नाम एक बार भी किसी जिव्हा से उच्चारित होना, किसी हृदय में स्फुरित होना आपकी ही विशेष अनुकम्पा द्वारा सम्भव है। हे करुणामयी ! अनन्त कोटि जन्मों से आपसे विमुख यह हृदय अब जान गया है कि इस अनन्त भटकन के पश्चात यदि कहीं सुख है तो केवल आपके ही श्रीचरणों में। हे प्राणनाथ ! आप तो सदा से ही सँग हो परन्तु अपने हृदय की मलिनता से आपका सँग भी स्वीकार नहीं होता। हे करुणासिन्धु ! जब आप पतितपावन हो, पतितों के द्वारा आपके मात्र एक नाम उच्चारण से ही सम्पूर्ण पतितता नष्ट हो जाती है। हे करुणाकर! अब एक करुणा और कीजिये नाथ कि स्वयम के अवगुण न बखान आपके अनन्त गुणों का ही बखान करूँ। आपकी महिमा तो शब्दातीत है , परन्तु नाथ आपके नाम उच्चारण से , आपके गुणगान से ही इस अतृप्त हृदय में आपकी करुणा झलकने लगती है। हे नाथ ! मुझमें स्वयं की भी विस्मृति उदित हो जावै, यह जिव्हा आपके नाम , गुण उच्चारण में ही डूब जावै। यह दृष्टि अब ब्राह्य संसार से विमुख हो आपके कोमल चरणार...

कृष्ण लीला रहे हिय समाई

कृष्णलीला हिय रहै समाई राधाभाव कृष्ण कु भाई हिय सों कृष्ण राधाभाव चाह्वे कैसो नेह राधा हिय समावै राधाभाव कु करन आस्वादन कृष्ण आये रूप गौर बन राधाभाव राधाहिय राधाकांति कृष्ण पुकारे विरहणी राधा भाँति कारण बनायो कृष्णनाम प्रचार कृष्ण धरायो श्रीगौर अवतार भक्ति बड़ो दुर्लभ होय कलिकाला हरि दियो मार्ग सहज कृपाला महामन्त्र को दियो जगत दान युगल भक्ति प्रेम रस खान शिव यही गौर दरश जब पावै गौर गौर कहे नाच दिखावै पूछे गौरी कौन हिय पायो नाथा गौर कथा की कह्यो सब बाता कलियुग नाम भक्ति को धारा गौरहरि सहज कियौ जन भारा गौर कृष्ण युगल भेद न कोय एको राम कृष्ण गौर होय षड्भुज रूप गौर हरि धारयो राम कृष्ण कलिगौर अवतारयो गौर कृष्ण कोऊ भेद न होय जाने सोई हरि जनाय जोय

गौर कृपा

गौर कृपा गौर कृपा क्या है । श्री गौरांग प्रभु का एक नाम ही कोटि जन्म के पाप भस्मीभूत कर देता है तो उनका नाम जिव्हा पर आना ही वास्तविक गौर कृपा है। श्री कृष्ण प्रेमावतार हैं परंतु उनका कृष्ण होना भी उनको तृप्त न कर सका तो प्रभु गौर हो गए। रसराज महाभाव की पूर्णता ही गौर प्रभु  । नाम और नामी में कोई भेद नहीं तो गौर नाम और गौर भिन्न नहीं। गौर नाम का जिव्हा पर आना ही गौर कृपा है।     क्या गौर कृपा के होते भी जीव को माया खींच सकती है ? नहीं कदापि नहीं। ईश्वर विमुख जीव को ही माया प्रताड़ित कर सकती है परंतु गौर नाम जिसकी जिव्हा पर नृत्य करे , अपितु एक बार भी प्रकट हो जावे तो माया का कोई प्रभाव नहीं हो सकता। नाम मे ही नामी का खेल है। जब तक नाम मे पूर्ण निष्ठा न होतब तक नामी अपना स्वरूप प्रकट नहीं करता। जीव का ईश्वर के प्रति समर्पण उसका स्वयम का नहीं है वरन प्रभु स्वयम ही उसे अपने रस में खींचते हैं। तो महावदान्य श्री गौरांग प्रभु का नाम जिस हृदय में प्रकट हो वहां माया की जड़ता प्रभावहीन ही है क्योंकि माया स्वयम ईश्वर की एक शक्ति ही है।    हे दीनदयाल ! हे कृपालु ! हे पत...

नील पट वसन धार निताई

नील पट वसन धार निताई प्रेम सौरभ रस सार निताई ढोल मृदंग करताल निताई भूषण वसन गलमाल निताई चन्दन मृगमद कर्पूर निताई सेवक सेवित भरपूर निताई धन गौरांग धनिक निताई गौरप्राण प्रिय अधिक निताई हरिनाम प्रिय अवधूत निताई हरिप्रेम मत्त हड़ाई सूत निताई नीलाम्बर राजित गौरप्राण निताई बाँवरी जीवन अभिमान निताई प्राण रमे जिव्हा कहे नाम निताई क्षण क्षण हिय बहे नाम निताई

नाथ मोहे हरिनाम रस

नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ पाप त्रिताप सकल मेरो नासे कृपा कोर अब कीजौ गौर निताई नाम रटे जिव्हा जितनी स्वासा आवै तुम्हरी शरण पड़े जो नाथा माया कित भरमावै यही अरजोई करे बाँवरी नाथ शरण रख लीजौ नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ जग जंजाल निकालो नाथा हरि प्रेम हिय आवै नाम भजन की भिक्षा दीजौ और कछु न बाँवरी चाह्वै गौर निताई नाम धन मेरो धनवान मोहै अब कीजौ नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ निज जन की कछु सेवा दीजौ मिटे मेरो अधमाई चरणन धूर बनाये राखो चाहूँ न मान बड़ाई कोऊ नेम विधि न जाने बाँवरी किस विध साहिब रीझो नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ हरि नाम को व्यसन लगावो षड रस मोहे न भावै नाम रस ऐसो भिगोये राखो बिन नाम न स्वासा आवै भिक्षा पुनि पुनि मांगें बाँवरी देर न अबहुँ कीजौ नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ पाप त्रिताप सकल मेरो नासै कृपा कोर अब कीजौ

हित हरिवंश निताई गौर

हित हरिवंश निताई गौर जयजय रसिकन को सिरमौर जयजय वल्लभ श्रीहरिदास हिय वृन्दावन कीजौ वास नाम एक ही युगल एक रस नाम भजे हिय होवै सरस् सब रसिकन की कृपा मनाऊँ मुख से श्यामाश्याम नित गाऊँ

परम दयाल मेरो निताई चाँद

परम दयाल मेरौ निताई चाँद बड़ौ किरपाल मेरौ निताई चाँद तिलक धरै भाल मेरौ निताई चाँद मनमोहिनी चाल मेरौ निताई चाँद गल पुष्प माल मेरौ निताई चाँद पद्मावती लाल मेरौ निताई चाँद गौर प्रेम प्रदाता मेरौ निताई चाँद कलिताप त्राता मेरौ निताई चाँद गौर प्रेम मदमाता मेरौ निताई चाँद प्रेम रस हुलसाता मेरौ निताई चाँद शुद्ध नाम दाता मेरौ निताई चाँद हरि बोल नचवाता मेरौ निताई चाँद श्रीवास ग्रह धन मेरौ निताई चाँद दीर्घ घूर्णित लोचन मेरौ निताई चाँद श्रीजीव जीवन धन मेरौ निताई चाँद मन मोहे सर्व जन मेरौ निताई चाँद करे प्रेम आस्वादन मेरौ निताई चाँद मेरौ हृदय परम धन मेरौ निताई चाँद

छोड़ दिए वेद शास्त्र

छोड़ दिये वेद शास्त्र सकल तेरौ ही आधार गौर निताई नाम भजूँ मैं नित रहूँ गौर चरणार एकहुँ नाम भजै ते होवै भव बन्धन सों निस्तार महावदान्य गौर निमाई हिय सों अति उदार पात्र कुपात्र कोऊ न देख्यो दियो प्रेमरस धार हा हा गौर निताई नाथा बाँवरी रह्यो पुकार

निताई गौर हित हरिदास

*निताई गौर हित हरिदास* निताई गौर हित हरिदास नाम, सब युगल प्रेम की कूँजी। जपत जपत नित रटत रटत नित ,प्रगटै प्रेम कौ पूँजी।। नाम रूप लीला अभिन्न सब , एकौ सार होय प्रेम। युगल नाम कौ रटन बनै , क्षण क्षण कौ यह नेम।। बाँवरी कबहुँ हिय विकल होवै पाथर ,जिव्हा सौं करै गान। लोभ वासना मद मत्सर छूटै, कबहुँ तजै देह अभिमान।। सन्तन रसिकन कौ चरण धूरि, लै बाँवरी राखै नित्य ललाम। बाँवरी ठौर युगल चरणन माँहिं ,जिव्हा सौं उच्चरै नाम।।

गौर नाम के रसिया कौन

गौर नाम के रसिया कौन निताई निताई निताई चाँद गौर कथा के रसिया कौन निताई निताई निताई चाँद गौर सेवा स्वरूप कौन निताई निताई निताई चाँद गौर अभिन्न रूप कौन निताई निताई निताई चाँद गौर प्रेम प्रकाशक कौन निताई निताई निताई चाँद गौर प्रेम प्रदायक कौन निताई निताई निताई चाँद गौर प्रेम सहज लुटावे कौन निताई निताई निताई चाँद प्रेम रस रीति सिखावे कौन निताई निताई निताई चाँद कलिमल ताप नसावै कौन निताई निताई निताई चाँद सेवा रस रीति सिखावै कौन निताई निताई निताई चाँद सेवा आप करावै कौन निताई निताई निताई चाँद गौर नाम सुन हर्षावै कौन निताई निताई निताई चाँद क्षण क्षण गौर नाम लहे कौन निताई निताई निताई चाँद बाँवरी हिय बसे रहे कौन निताई निताई निताई चाँद

यह सुलगन

हाँ कुछ अंगार तो गिरे सुलगता है कुछ तो पर जलता नहीं कुछ धुआँ सा उठता है कुछ पिघलता है अंदर ही अंदर कुछ बहता है आँखों से धीरे धीरे सुलग जाए कभी तो जल जाएगा अभी यह सुलगन बनी रहे याद रहे अपनी मंजिल की जल जाना है यह सुलगन बनी रहे यह मचलन बनी रहे

झूठ भी झूठा

झूठ भी झूठा प्रेम हैं वो  बस प्रेम प्रेम ही जानते हैं प्रेम बिना कुछ समझते नहीं झूठे से भी कह दो न तुमसे प्रेम है झूठे से भी कहदो वो सच मान लेते हैं झूठ भी पूरा झूठ ही हो तब पूतना ने कहा न झूठा सा अभिनय किया एक माँ का अभिनय झूठा अभिनय सच लगा उनको हाँ पूरा पूरा सच लगा माँ ही कहा माँ ही माना झूठ था वो पूरा ही झूठ था पर उस झूठ में प्राण थे प्राणों की बाजी थी प्राण हरने थे पर हरण हुआ प्राणों का न न  हरण हुआ झूठ का उसके प्राणों को तो प्रेम से भरा जो अभिनय था उसे सत्य किया यहाँ झूठा सा झूठ भी नहीं सच है यह झूठ भी होता यहाँ प्राण न लगे अभी अभिनय तो हुआ पर उस अभिनय में भी प्राण नहीं प्रेम प्रेम तो दूर की बात अभी हमारा झूठ भी झूठा है झूठ भी झूठा......

हरि मैं देखी मन की चाल

हरि मैं देखी मन की चाल पकर पकर भोगन ले जावै करो सासन तत्काल नहीं समर्थ कछु हरि मैं तुम समर्थ सब काल अपने चरणन चेरी कीजौ न खावै काल व्याल जड़ता नासै सेवा भजन बनै हे नाथा दीनदयाल बाँवरी भोगन की गठरी नाथा हिय कल्मष ताप उबाल

नकली चेहरे

नकली चेहरे एक चेहरे पर जाने कितने नकाब लगाता हूँ मैं अन्दर कुछ और हूँ बाहर कुछ और दिखाता हूँ मैं जिया है मुद्दतों से कई झूठे से चेहरों के सँग हाँ उछाले हैं नए नए मैंने कितने ही रँग मेरा चेहरा ही कैसा है भूल जाता हूँ मैं अन्दर कुछ और....... मेरी असलियत तो मैं जानूँ या है खुदा को पता हूँ खतावार बड़ा करता हूँ रोज कितनी खता बाहर हैवान हूँ भीतर के इंसा को  दबाता हूँ मैं अन्दर कुछ और........ हाँ नकाबों में बहुत खुद को छिपाया है मैंने रँग नया रोज पहन खुद को रँगाया है मैंने समझो कोई खेल नया रोज ही खेल जाता हूँ मैं अन्दर कुछ और........ है तुझमें थोड़ी भी समझ तो रँग असली पहचान लेना झूठी बातों में न आना अब सच्चाई भी जान लेना बात कुछ और हो कुछ और ही बताता हूँ मैं अन्दर कुछ और........ कभी सोचता हूँ कि मेरा भी कोई वजूद है क्या जिस्म में रूह नहीं कोई महज़ एक ताबूत है क्या अपनी रूह की अर्थी को ही रोज उठाता हूँ मैं अन्दर कुछ और.......