रस पद

नवल सेज पौढ़े दोऊ खेलत रसरँग खेल
नैन भरत नाँहिं निरख निरख रूपरँग की बाढि बेल
नवल किशोर मदमाते दोऊ तृषा भई नवल नवेलि
श्यामाश्याम परस्पर विहरत जय जय अद्भुत युगल केलि

                              2

नवल युगल नवल रस रँग नवल तृषा नवल उन्माद
प्रेमरस आतुर भये दोऊ प्रेमरस को चाखे स्वाद
रस लम्पट अति तृषित लालवर होवै रससुधा अधीन
लाडली रूप करुणा को ऐसो दियो प्रेमरस देख्यो दीन

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून