हमको तो जीने की आदत
हमको तो जीने की आदत है तन्हाइयों में
ढूंढते हैं तुमको जाने कबसे तेरी परछाइयों में
दर्द सहना अश्क़ पीना आदत मेरी पुरानी है
हम तो आदी हो चुके हैं रोज़ रुसवाइयों के
हमको तो ......
दर्द में जीने का ही नशा हो चुका हमको
हम क्या चखते हैं कोई स्वाद इन मिठाइयों के
हमको तो ......
सिसकियाँ ही सुनते हैं बस रूह अपनी की
हम कहाँ सुनते हैं सुर कोई तेरी शहनाइयों के
हमको तो ........
ये तो सच है कि अब तलक न मोहबत हुई तुमसे
तुमको भी कोई सुकून होगा कहाँ कसाइयों के
हमको तो ........
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