होऊँ कपटी

होऊँ कपटी विषय सुख कामी कौन घड़ी युगल ध्याये
जगत में लौटत रहे हिय मेरो किस विध युगल को आस लगाये
रसना जगत विष्टा ही पावै मुख सों कबहुँ हरिनाम न गाये
दो चार आखर लिख दीजौ ऐसो झूठो तू भक्त कहाये
बाँवरी धिक् धिक् होय ऐसे जीवन जो हरि विमुख जाये
काहे जननी तेरो जैसी सन्तान जने अछो रहे बाँझ कहाये

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