सद्गुरु मेरा

सद्गुरु मेरा दीन दयाला मैं नित नित बलिहारी
शरण में राख्यो हाथ पकरि मेरो कीजौ मेरी रखवारी
नाव कीजौ भव पार मेरी हरिनाम से पार उतारी
चरणन की रज सीस चढ़ाऊँ मैं दासी बनूँ तिहारी
महल टहलनी दीजौ मोहे सेवा करूँ प्यारे प्यारी
अबहुँ विलम्ब न कीजौ मेरे सद्गुरु विनती सुनो हमारी

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून