ढोंगीं को कबहुँ न अनुसरे

ढोंगीं को कबहुँ न अनुसरे
कौन कहे युगल चरण चितवो आपहुँ न शरण परे
छांड दीजौ ऐसो सँगत जो भव विष्ठा में लौटन करे
हरि नाम की डोर ही राखियो जो भव सों पार करे
हरि आपहुँ होय सहाय जो क्षण क्षण हरिनाम उच्चरे
बाँवरी रह्यो तू सदा सों ढोंगीं कबहुँ न मति परे

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