बिरह न दूंगी
ना सखी अपनों बिरह न दूँगी
क्षण क्षण पीर बढ़े उर अंतर हंस हंस पीर सहूँगी
बिरह दियो पिया प्यारे मोहे बिरह ताप जरूँगी
क्षण क्षण तपे देह ऐसो मैं पिय पिय रटन करूँगी
बिरह दियो पिया नाम मोहे ऐसो स्वास स्वास मैं लूँगी
मत लीजौ कोऊ विरह मेरो अपनों बिरह न दूँगी
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