स्पर्श

वो स्पर्श
तुम्हारा स्पर्श

क्या वो माटी चंदन न बन जाती
जिसे तुम्हारा स्पर्श हो
चंदन होकर कोई सुख 
तुम्हारा ही
तुम्हारे ही स्पर्श से...

क्या वो कोयला 
वही कालिमा भरा रहेगा
या अमूल्य हीरा कोई
तुम्हारे स्पर्श से

क्या लोहा 
लोहा ही रहेगा
तुम्हारा स्पर्श
पारस सम
स्वर्ण न करेगा

क्या वो पाषाण
पाषाण ही रहेगा
जिसे मिला तुम्हारा स्पर्श
न वो पाषाण नहीं
तुम्हारा ही स्वरूप कोई

कौन रूपांतरण कर सके
एक स्पर्श
तुम्हारा स्पर्श
क्या स्पर्श किये तुम
इस मलिन चेतना को
क्या यह मलिन ही रहेगी
आवरणों में लिपटी

मिला था कभी....
 एक स्पर्श.....
तुम्हारा स्पर्श.....

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