कभी कभी
कभी कभी हाल ए दिल ऐसा होता है
तेरा ही इश्क़ मेरी आँखों में आकर रोता है
सच है कि मुझको इश्क़ कभी हुआ ही नहीं
तेरा ही इश्क़ मुझमें सपने सभी सँजोता है
कभी कभी.....
जाआगे तुम भी कहाँ रूठकर मुझसे दूर भला
मुझको तेरे इश्क़ का एहसास मुझमें होता है
कभी कभी......
मेरे ही होकर रूठते हो मुझसे ही तुम क्यों
कौन मुझमें आकर लड़ी अश्कों की पिरोता है
कभी कभी.......
चुरा लो मुझको कि थोड़ी सी मैं रहे न बाकी
तेरे दामन से लिपटकर ही सुकून होता है
कभी कभी.....
थाम लो थोड़ा मुझे कि बह न जाऊँ तूफानों में
चोट लगती है मुझे और दर्द तुमको होता है
कभी कभी.....
सच है हर दर्द से है इश्क़ का दर्द बुरा
जितना बहता है अश्क़ हो मीठा होता है
कभी कभी......
कोई दवा न कोई दुआ लगती है फिर उसे
हाल वही जाने जो इश्क़ का मरीज होता है
कभी कभी......
इश्क़ हो तुम और तुमसे ज्यादा है किसको पता
इश्क़ के बीमार का मरहम ही इश्क़ होता है
कभी कभी.....
कितना बेचैन करके रखा है मुझको मुद्दत से
कौन जाने हाल ए दिल कैसा होता है
कभी कभी.....
आज बह जाऊँ न मैं कहीं देखो लफ़्ज़ों में
एक एक लफ्ज़ आज मेरा लिखते रोता है
कभी कभी....
इश्क़ के लफ्ज़ भी होते हैं रंगों से भरे
इश्क़ का दर्द भी उतना रँगीन होता है
कभी कभी....
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