दिल की बात

तुमको जो लिख सकें वो लफ्ज़ भी तुम्हारे होंगे
मुझमें मेरे लफ्ज़ भी खामोश से ही रहते हैं

अपनी तो जिंदगी निकल जाती तुझको सोचूँ कभी
यह तो इश्क़ है तेरा जो मुझको भूलने नही देता

चुन चुनकर कुछ लफ़्ज़ों को कुछ बुनने लगती हूँ

जैसे फूल ही उठा रही सजाने को तुम्हें

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