नित्य रमण
हाँ खोज ही लेते हो तुम
मिलन का नव नव बिन्दु
रमण का
नव नव उल्लास
एक एक नाम
तुम ही तो हो
एक एक स्वास
तुम ही तो हो
कहाँ खोजूँ
किसे पुकारूँ
यह स्वास ही नाम बने
भीतर बाहर
आती जाती स्वास सँग
तुम्हारा नाम
नहीं नहीं
तुम ही
भीतर बाहर
आते जाते
मुझमें रमण करते
लहराते हुए
नित्य आंनद से भरता
तुम्हारा एक एक स्पर्श
मेरी स्वासों में
तुम्हारे नाम का
तुम्हारा ही
रमण रमण रमण
हृदय की प्रत्येक धड़कन सँग
यह व्याकुल स्पंदन
तृषित स्पंदन
छूकर भी प्यासा
और और छूने को
मिलकर भी अधूरा सा
फिर विस्मृति
गहन विस्मृति
रमण की विस्मृति
नित्यानन्द के स्पर्श की विस्मृति
पुनः पुनः रमण की लालसा
नित्य वर्धन
नित्य आंनद
नित्य रमण
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