ये इश्क़ तेरा
मुझमें जो उछलता है ये इश्क़ तेरा
सांसों में भरता है ये इश्क़ तेरा
हुई पगली सी दीवानी सी
कुछ खोई सी बेगानी सी
जो मुझमें उतरता है ये इश्क तेरा
मुझमें जो....
यह मदहोशी सी है इश्क़ की
यूँ खामोशी सी है इश्क़ की
फिर बातें करता है ये इश्क़ तेरा
मुझमें जो.....
कभी अश्कों की है कतार लगी
तेरे नाम की बस यूँ पुकार लगी
पल पल में सँवरता है ये इश्क़ तेरा
मुझमें जो.....
कभी लफ़्ज़ों में यूँ बहता है
तेरे इश्क़ की बातें कहता है
नस नस में भरता है ये इश्क़ तेरा
मुझमें जो......
कोई ग़ज़ल लिखूँ कोई गीत लिखूँ
तू ही तो बता क्या मनमीत लिखूँ
बस लिखता रहता है ये इश्क़ तेरा
मुझमें जो.....
कुछ ठहर लूँ कुछ थम जाऊँ
कुछ सुन लूँ मैं फिर कुछ गाऊँ
जाने क्या करता है ये इश्क़ तेरा
मुझमें जो....
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