जगति की धुरी
हरिहौं बनी जगति कौ धूरी कबहुँ उरै पहुँचे ब्रज वीथिन होय कामना पूरी जन्म जन्म रही जगति धूरी कबहुँ सन्तन पग न परी कबहुँ बाँवरी सन्त चरण लग ब्रज वीथिन रहै जूरी हा हा नाथा सन्त चरण रज कीजौ जन्म जन्म अबेरी नाम देयो अपना या रसना कबहुँ हरिनाम न टेरी