तेरा ही इश्क़
अश्कों की बरसात रुकती नहीं आज जाने क्यों
क्या मेरी आँखों से तेरा ही इश्क़ बहता है
मैं तो होकर भी न रही जाने क्यों अब मुझमें
मुझमें अब ज़िंदा भी तेरा ही इश्क़ रहता है
मेरे दिल में धड़कती यह धड़कनें तुम्हारी ही
अपने ही दिल में तुमको धड़कता पाती हूँ
हैरान हूँ साहिब तेरा इश्क़ देख देख कर मैं
खामोश सी इन बरसातों में भीगती जाती हूँ
लफ्ज़ भी खो चुके मेरे कहीं बड़ी मुद्दत से
एक अरसे से खामोशी को हमने ओढ़ लिया
बस तेरी ही कहानियाँ सुनते सुनाते हुए हमने
तेरे इश्क़ से ही बस अपना रिश्ता जोड़ लिया
जाने क्या दबा है इस लंबी सी ख़ामोशी में हमारी
जो पिघल पिघल आज आँखों से मेरी बहता है
नहीं मुझे अब तलक इश्क़ न हुआ न हुआ तुमसे
तेरा ही इश्क़ बस अब रग रग में मेरी बहता है
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