श्रीवृन्दावन
श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
जो कोई नाम जपे वृन्दावन
श्यामाश्याम प्रेम हिय उमगै पावै भैया साँचो धन
श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
वृन्दावन सकल प्रेम कौ रासि
नाम जपत भोग अविद्या विनासी
सकल ताप नासै रसभूमि करै सबहि पतितन कौ पावन
श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
करें खेल नित नागरी नागर
वृन्दावन सकल रसन कौ सागर
नाम लेत झरै नैना पुलकित होय सकल तन मन
श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
भज भज रसना विपिन कौ नाम
नाम वृन्दाविपिन होय पूर्ण काम
सुर मुनि दुर्लभ रसरेणु सीस चढ़ा नित्य कर वन्दन
श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
वृन्दावन रसिकन कौ धाम
गावैं क्षण क्षण श्यामाश्याम
नाचै गावैं युगल रिझावैं युगल नाम कौ करैं कीर्तन
श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
Comments
Post a Comment