विविध भांति को भोजन

विविध भाँति कौ भोजन पावै यह रसना नाम विहीना
नाम भजन कौ स्वाद न पायौ बहु भाँति रस लीन्हा
स्वाद जगति कौ झूठो बाँवरी काहे परी जगति कौ फेर
स्वास स्वास रही बिरथा कीन्ही बनायो भोग विषय कौ ढेर

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