बिरथा स्वासा
हरिहौं कीन्हीं बिरथा स्वासा ।
दरस भये न इन नैनन सौं देखत जगत तमासा ।।
बिरथा रसना तुव नाम न गाई पावै भोग बहु भाँति ।
बिरथा कर जो सेवा न कीन्हीं बिरथा सब तन काँति ।।
बिरथा जीवन सगरो गोविन्द कौन भाँति लगै तुव काजै ।
भोग लोभ मद मत्सर शत्रु बाँवरी हिय सब आन बिराजै ।।
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