हे हरि

हे हरि हिय न भजन कौ प्यास
जगत दिखावा बन्यौ घनेरो परी माया की फास
नाम न निकसै एक क्षण साँचो झूठ जगत कौ रास
बाँवरी मूढ़े नींद परी गहरी बिरथा कीन्ही स्वास

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