तो कैसे
कभी उतरो मेरे लफ़्ज़ों में बात
कहो दिल की लिखूँ तो कैसे....
जाने क्या हाल दिल की दिल को ही न पता है
हाल ए दिल भी दिल से पूछूँ तो कैसे.....
कुछ सुलगता सा है भीतर जाने कुछ बहता सा
नहीं अब जुबाँ पर आता कहूँ तो कैसे.....
सच है कि काबिल ए इश्क़ हम मुद्दत से नहीं थे
इस इश्क़ की चाशनी में मिलूँ तो कैसे.....
नहीं काबिल इतनी साहिब मैं तुम को दिल मे रखलूँ
और खुद तुम्हारे दिल में रहूँ तो कैसे.....
ज़रा मुझको तड़प देना इस इश्क़ की कोई सुलगन
पत्थर सा हो चुका दिल तड़पूं तो कैसे.....
न कोई खुशी है न ही गम रहा कोई बाकी अब
जाने यह कैसा मन्जर कुछ कहूँ तो कैसे......
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