भोग विषय

हरिहौं भोग विषय दिन बीते
नाम भजन की रीति बिसरी भांड रह गए रीते
बिरथा गमाई स्वासा स्वासा दिन जितने भी बीते
धिक धिक जीवन ऐसो बाँवरी क्षणहुँ लगी न प्रीते

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