भोग विषय
हरिहौं भोग विषय सिर चढ़ बोले
नाम विहीना पतित बाँवरी अपनी पोलन खोले
कूकर नाँहिं हरिहौं चौखट तिहारी मद अभिमान घोरा
विरथा कीन्हीं सगरी स्वासा चित्त माया कौ डोरा
हा हा नाथ अबहुँ बिलपत रही जनमन जन्म बिसराई
बाँवरी खोल पोल अबहुँ सगरी कीन्हीं पाप कमाई
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