मन भजन चोर
हरिहौं यह मन भजन कौ चोर
भोग पदार्थ नीके लागे बाँवरी जगति राखै दोर
जगति राखै दोर बाँवरी कछु सुने न सन्तन बात
बिरथा कीन्हीं स्वासा मूढ़ा जीवन अनमोल गमात
कौन भाँति दसा सुधरै न हरि गुरु चरण मन लाय
ढोंगी पाखण्डी घोर प्रपंची रही झूठो स्वांग बनाय
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