बाँवरी न भजन सुहाय
हरिहौं कबहुँ बाँवरी भजन सुहाय
विष्ठा कीट जन्म जन्म सौं भोग विषयन भाय
जगति पदारथ रुचि राखै न करे भजन की बात
सन्त चरण रज न सुहावै मूढ़ा भोग विषय लपटात
हरिहौं आपहुँ देयो चपत एक भव निद्रा छुट जाय
धिक धिक ऐसा जीवन बाँवरी स्वासा रहै गमाय
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