बाँवरी ढोंगी

हरिहौं बाँवरी ढोंगी होय भारी
सूकरी पतित भक्त अपराधिन मुख सौं देवत गारी
भव निद्रा रही जनमन सोवत अबहुँ नाय उबारी
कान देय न सुनै हरि गुरु वाणी बिरथा होय ख़्वारी
बनत न देत चुकाई नाथा होय विषयन गठरी भारी
फिरै जगति अभिमान विषय मद असल न होय भिखारी

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