पाथर हिय

हरिहौं पाथर हिय कठोर
कबहुँ नाम लेय द्रवै चित्त होय प्रेम रस भोर
कबहुँ नाम सौं प्रीति उपजै कबहुँ नाम रस पावै
छांड भोग विषयन बाँवरी नाम हरि कौ गावै
हा हा नाथ भई दुर्गति बिन नाम भजन कंगाल
उठ री बाँवरी भव निद्रा सौं छांड जगति जंजाल

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