अग्नि थम न जाये

हाँ बहुत छोटे से पँख हैं मेरे छोटी सी मेरी उड़ान
न छु पाऊँ परछाई तुम्हारी अपनी व्यथा का मुझको भान

कितनी दूर रहते हो मुझसे कैसे तुम्हारा स्पर्श करूँगी
तरस गई यह ऑंखें मेरी कैसे तुम्हारा दर्श करूँगी

यही पीड़ा प्राण हरण करे बस सब भांति यह दासी अयोग
दरस परस सेवा मिले किस दिन कब आवे यह शुभ संयोग

चलो रखो यह अग्नि सुलगती हिय की पीर कहीं जम न जाये
न हो अश्रु की बरसातें प्रियतम यह अग्नि कहीं थम न जाये

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