भव रोग

हे हरि हरो भव रोगा
कबहुँ छुटे भोग लालसा होवे भजन संजोगा
कबहुँ मन की भटकन नासै नाम भजन रस पीवै
टेर टेर नाम प्रियाप्रियतम कौ कबहुँ बाँवरी जीवै
हरि हरो सब भव रोग भोग सब चरणन लाय बैठावो
सेवा कौ कोउ मर्म न जानू नाथा आपहुँ योग बनावो

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