पीर की कलम

निर्बल के बल तुम्हीं राम
भटकत फिरत ठौर ठौर सब तुम्हरे चरण विश्राम
जन्म जन्म पाप कौ बोझा किस विध नाथ उठाऊँ
नाम विहीना फिरै जगत बांवरी भजन ध्यान न लगाऊँ
हा हा नाथ व्यथा यह मन की तुमको टेर सुनाऊँ
 काहे चरणन दूर करो हो एक स्वास नहीं पाऊँ

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