लहरें
*लहरें*
इश्क़ के समन्दर में उठती हैं कई लहरें
यह कौन सी लहर है यह कौन सी लहर है
लम्बी सी रात गुज़री अश्कों को पीते पीते
अब कौन सी सहर है अब कौन सी सहर है
आदत सी हो गई है थोड़ा रोज टूटने की
बढ़ता ही जा रहा है यह इश्क़ का कहर है
अब तक भी न हुआ है नज़रों से नज़र मिलना
सबसे चुराकर नज़रें फिर देखती वो नज़र है
थोड़ा हँस के गुजरा पीछे थोड़ा रँगे मलाल भर कर
चलता ही जा रहा है जो इश्क़ का सफ़र है
जाने क्या पिया था मैंने नहीं होश वापिस आया
मुझको ही मुझसे मिलने की न हुई कोई ख़बर है
जाने क्या खुमारी छाई कोई चोट करदो मुझपर
थोड़ा होश तो सँभालूँ ये मदहोशी का ही शहर है
यह दर्द टीस देता हर ज़ख्म का निशां है
छाई खुमारी कैसी उनके इश्क़ का असर है
नहीं सच में इश्क़ मुझको यह तुम उन्हें बता दो
नहीं काबिल इक नज़र के क्यों उनको सब फिक्र है
नहीं अब सम्भल रहा है भीतर उछल रहा है
कोई दर्द है कसकता मीठा इश्क़ यह ज़हर है
जाने क्या लिख रही है यह कलम मेरी पागल
अश्कों को लज़फ़ करके करती इधर उधर है
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