रँग खेलत श्यामाश्याम
*रँग खेलत श्यामाश्याम*
सखी री !
रँग खेलत श्यामाश्याम
रँग खेलत......
रँग रास की ऋतु सुहानी
पिय प्यारी के हिय लुभानी
रँग रंगीले दोऊ रँग भरै
रहै भीजत आठों याम
सखी री ......
रँग खेलत श्यामाश्याम
रँग महल के रँग रंगीले
नित नव नवल छैल छबीले
उमगि उमगि रँग छिन्न छिन्न बाढ़ै
यह रँग रँगीलो रसधाम
सखी री !
रँग खेलत श्यामाश्याम
नित नवल सिंगार फाग कौ
देत बधाई अविचल सुहाग कौ
खेलत खेल रँग रस न अघावो
बाढ़त रहै प्रेम कौ दाम
सखी री !
रँग खेलत श्यामाश्याम
रँग महल रँग नित बरसै
भीजत भीजत अलिन रहै हरषै
प्रेम कौ रँग लगे सखी नीको
नीको युगल मेरे कौ नाम
सखी री !
रँग खेलत श्यामाश्याम
रँग रस कौ हुलास घनेरो
कहत हिय भीजै सखी मेरो
बलिहारी अपने प्राण युगल की
बाँवरी युगल चरण बिसराम
सखी री !
रँग खेलत श्यामाश्याम
सखी री !
रस खेलत श्यामाश्याम
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