हिय सों कपट न जावे ५२

साहिब मेरो हिय सों कपट न जावै
जगत की विष्ठा अति प्रिय लागे भजन मोहे न भावै
उर अंतर की मैल अति गाढ़ी बाहर ते ढोंग रचावै
भजन विहीन रैन दिवा डोलूँ क्षण क्षण चित्त भरमावै
आपहुँ हाथ देय राखो बाँवरी कछु भजन बन पावै
नेक सम्भार कीजौ नाथ अबहुँ नाम नाँहिं बिसरावै

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