हे करुणासिन्धु

हे करुणासिन्धु ! हे दीनबन्धु ! हे पतितपावन !

सत्य हैं यह नाम आपके यह नाथ। अपने नाम के अनुरूप ही कृपा बरसाने वाले हो। इस मलिन हृदय से तुम्हारा कैसे भजन हो  । हे पतितपावन !! आप ही पतितों का उद्धार करने वाले हो। आपकी कृपा देख देख हृदय फटने को आ जाता। हाय !! नाथ आप इस हृदय की सब जान लेते हो। हर बार गिरने से बचाया तुमने। तुम ही तो आते हो सदा सर्वदा विविध रूप धार। अपने आश्रित की पग पग पर सम्भार करने वाले हो। जिस प्रकार एक बालक अपनी माँ की गोद मे निश्चिन्त है , आपमें तो अनन्त कोटि मां का वात्सल्य सिंधु समाहित है। हे कृपानिधान ! आपकी कृपा देख देख नेत्र भर आते हैं । आपकी कृपा न तो मेरे हृदय में समा पाती है न ही मेरे नेत्रों से। यदि मेरे मुख में कोटि कोटि जिव्हा भी हों तो भी आपके गुणगान करने में असमर्थ है यह तुच्छ जीव। परन्तु आप तो सर्व ज्ञाता हो न सब जानते हो। मलिन को ही अपनाने वाले हो।

दीन दयाला प्रभ कृपाला तुमसों कौन जगत माँहिं पाया
भव सागर माँहिं डोलत मेरो नैय्या आपहुँ पार लगाया
नाम रूपी डोरी ते बाँधत ही हरि मोहे आन बचाया
जन्मन की जड़ता मेरो नासी हरि नाम को चाव बढ़ाया
बलि बलि जाऊँ सद्गुरु तुमसों मेरो सगरो दोष बिसराया
मोसों कौन अधम सिरमौर जी कृपा कीन्हीं चरण बैठाया

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