बड़े खुदगर्ज़

बड़े खुदगर्ज़ से हैं हम , पर मानते नही तुम तो
इक बार जो हँस के देखा , तुमहें वहीं ठहरे पाया
नहीं देखा ऐब मेरा चाहे लाखों हैं ऐब मुझमें
शीशा है उल्फत का नज़र तेरी ,वही तूने बस दिखाया

काश मुझे कभी इश्क़ होता हम भी थोड़ा गुमाँ करते
हर तरफ है इश्क़ तेरा ही जिधर देखा उधर पाया
बड़े खुदगर्ज़.....

की लाख कोशिशें हमनें हम भी इश्क़ के हुनर सीखें
नादान हैं मुद्दत से हमें कोई गुर समझ न आया
बड़े खुदगर्ज़.......

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