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Showing posts from October, 2019

रुनझुन घुँघरू

रुनझुन रुनझुन घुंघरू बाजत नाचत गौरा राय रे साथ नित्यानन्द प्रभु गदाधर मिलि हरि हरि गाय रे परम् प्रेम बांटत अयाचत सहज करुण सुभाय रे हरि हरि बोले नाचे नाचे गौर दुहुँ भुज उठाय रे भई प्रसन्न विरहणी बाँवरी देख देख हर्षाय रे पुलक पुलक हँसे लेत बलैयां प्रिया मृदु मुस्काय रे

काची हमारी डोरी

हरिहौं काची हमरी डोरी कौन विध बांधे बाँवरी बलहीना सुनियो अरजा मोरी तुम्हरी डोरी पाकी नाथा तुमहिं बाँधो आपहुँ पकरि हमरो बल न कछु होय नाथा तुमहिं राखो जकरि तुम्हरौ पकरन हमहुँ नाय भाजै कोटि खीँचे माया हमरो दौर तुम्हरे चरणन हरि दीजौ चरणन छाया

देयो नाम कौ धन

हरिहौं देयो नाम कौ धन पतित भिखारिन जन्म जन्म सौं बिना नाम निर्धन नाम की पूँजी साँची नाथा कबहुँ बाँवरी चित्त लाय कूकरी भोगी जन्म जन्म सौं जगति विष्ठा पाय हा हा नाथा आपहुँ राखो पकरि पकरि इक बेर नासै ताप जन्म जन्म कौ मिट जावै सकल अंधेर

मन भजन चोर

हरिहौं यह मन भजन कौ चोर भोग पदार्थ नीके लागे बाँवरी जगति राखै दोर जगति राखै दोर बाँवरी कछु सुने न सन्तन बात बिरथा कीन्हीं स्वासा मूढ़ा जीवन अनमोल गमात कौन भाँति दसा सुधरै न हरि गुरु चरण मन लाय ढोंगी पाखण्डी घोर प्रपंची रही झूठो स्वांग बनाय

बाँवरी न भजन सुहाय

हरिहौं कबहुँ बाँवरी भजन सुहाय विष्ठा कीट जन्म जन्म सौं भोग विषयन भाय जगति पदारथ रुचि राखै न करे भजन की बात  सन्त चरण रज न सुहावै मूढ़ा भोग विषय लपटात हरिहौं आपहुँ देयो चपत एक भव निद्रा छुट जाय धिक धिक ऐसा जीवन बाँवरी स्वासा रहै गमाय

पाथर हिय

हरिहौं पाथर हिय कठोर कबहुँ नाम लेय द्रवै चित्त होय प्रेम रस भोर कबहुँ नाम सौं प्रीति उपजै कबहुँ नाम रस पावै छांड भोग विषयन बाँवरी नाम हरि कौ गावै हा हा नाथ भई दुर्गति बिन नाम भजन कंगाल उठ री बाँवरी भव निद्रा सौं छांड जगति जंजाल

हिय ताप बढ़ै

हरिहौं कबहुँ हिय ताप बढ़ै निहार मुख दर्पण माहिं बाँवरी कबहुँ भूमि गढै कबहुँ उतरै मलिन हिय सौं जन्म जन्म कौ धूर कबहुँ हिय नाम उपजै साँचो फिरै विषयन मद चूर हरिहौं आपहुँ लेयो बचाय नाँहिं बाँवरी कोऊ ठौर नयनन नीर कबहुँ बहाय बाँवरी भजै निताई गौर

खोटी कमाई

हरिहौं बाँवरी कीन्हीं खोटी कमाई स्वास अमोलक हरिनाम न कीन्हा माया रहै भरमाई मद अभिमान सिर चढ़ बोले अपनी औकात भुलाई पतित विषय भोगी अति कामी बिरथा रहै चिल्लाई हरिहौं फोरो मद की मटकी फिरै बाँवरी सीस उठाई बोझा जन्म जन्म कौ भारी मूढ़े सगरी पाप कमाई

भोग विषय

हरिहौं भोग विषय सिर चढ़ बोले नाम विहीना पतित बाँवरी अपनी पोलन खोले कूकर नाँहिं हरिहौं चौखट तिहारी मद अभिमान घोरा विरथा कीन्हीं सगरी स्वासा चित्त माया कौ डोरा हा हा नाथ अबहुँ बिलपत रही जनमन जन्म बिसराई बाँवरी खोल पोल अबहुँ सगरी कीन्हीं पाप कमाई

बाँवरी ढोंगी

हरिहौं बाँवरी ढोंगी होय भारी सूकरी पतित भक्त अपराधिन मुख सौं देवत गारी भव निद्रा रही जनमन सोवत अबहुँ नाय उबारी कान देय न सुनै हरि गुरु वाणी बिरथा होय ख़्वारी बनत न देत चुकाई नाथा होय विषयन गठरी भारी फिरै जगति अभिमान विषय मद असल न होय भिखारी

पाथर चित्त

हरिहौं काहे न पाथर चित्त द्रवै जनमन जन्म पतित अति पामर बाँवरी न हरिनाम लवै नाम लेत न होय चित्त अधीरा न कबहुँ नयन बहै लोभी जगति माया की बाँवरी न सन्तन चरण रहै हा हा नाथ किस विध होय उधारा बाँवरी न हरि भजै पकरि पकरि देयो चपत लगाय बाँवरी न अभिमान तजै

भक्तन अपराधी

हरिहौं बाँवरी भक्तन अपराधी माया भृमित पतित अति पामर कबहुँ चित्त न साधी नाम भजन की रीति बिसराई किये अपराधन कोटि स्वास अमोल बिरथा गए सगरै बाँवरी नीयत खोटी हा हा नाथ नाँहिं बल कोय आपहुँ करो सम्भारा अपनो बल राखी बाँवरी झूठा जनमन जन्म बिगारा

बाँवरी ढोंगी

हरिहौं बाँवरी ढोंगी होय भारी सूकरी पतित भक्त अपराधिन मुख सौं देवत गारी भव निद्रा रही जनमन सोवत अबहुँ नाय उबारी कान देय न सुनै हरि गुरु वाणी बिरथा होय ख़्वारी बनत न देत चुकाई नाथा होय विषयन गठरी भारी फिरै जगति अभिमान विषय मद असल न होय भिखारी