मूक वार्ता
तुम्हीं तो हो
हाँ तुम
पवन होकर शीतल स्पर्श देते
रस से भरा स्पर्श
कैसे मूक वार्ता करते
जैसे शेष सब जड़ हुआ उस क्षण
उस क्षण
बस तुम्हीं तो थे
वो कम्पन स्पंदन सिहरन
नेत्र जैसे हर ओर से हट
एक जगह ही सिमटना चाहते
कभी रसभार से मुँद जाते
तो कभी पुनः निहारन को व्याकुल
अपने हृदय की धड़कन ही
समेटते नहीं बनती जैसे
ठहर जाएं यह क्षण
ऐसे ही बस
तुमको निहारते तुमसे बतियाते
एक बार तुम्हारा स्पर्श हुआ
फिर जहाँ भी निहार बनती
बस तुम्हारे ही गीत सुनते
नाचते वृक्ष की लताएँ
क्या क्या कह रही मुझसे
वो खगों का कलरव
यह रसावेश
न पकड़ते बनता
न छूटते बनता
बस खोए रहना चाहती
ऐसे ही तुमको निहारते
तुम्हारी वार्ताओं में
कभी छूट जाती यह वार्ता
तो हृदय पुकार पड़ता
कहाँ खो गए तुम
फूट पड़ता यह रुदन
फिर एक एक अश्रु बन
तुम ही स्पर्श करते
हे प्रेम हे प्रेम
भर जाओ न भीतर
.....
यह वार्ता चलती रहती
अनन्त तक....
Comments
Post a Comment