एक बूंद तृषा

जड़
हाँ जड़ ही तो हूँ
नित्य नित्य गहरी होती जड़ता
संसार कीच में धँसती धँसती
सम्पूर्ण अभाव
चैतन्य हीन दशा
ऐसी जड़ता 
जहाँ प्रवेश ही नहीं चेतना का
और तुम
चैतन्य
नित्य चैतन्य
बद्ध जड़ताओं से मुक्त करने हेत
जड़त्व को चैतन्य करने हेत
काट दो न यह जड़ता
ऐसी जड़ता बद्ध दशा
कि चैतन्य स्पर्श की
एक बिन्दु लालसा भी न लगी
केवल और केवल
तुम्हारा स्पर्श 
ही इस जड़त्व से मुक्त कर
चैतन्यता की बिन्दु प्रदान कर सकता
हे महाचैतन्य 
हरे हरि हरण करो 
हरे हरि हरण करो
प्रदान करो
एक बूंद चैतन्य तृषा 
एक बूंद चैतन्य प्रेम 

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